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________________ ४०५ गा० २२] पदेसविहत्तीए द्विदियचूलियाए सामित्तं ४०५ ६६७. सुगम । * जइ भयस्स तदो दुगुंछाए अवेदो कायव्वो । अध दुगुंछाए तदो भयस्स अवेदो कायव्वो। १६६८. सुगममेदं पि मुत्तं । एवं पुचिल्लप्पणाए विसेसपरूवणं समाणिय सेसकम्माणमुक्कस्ससामित्तविहाणहमुत्तरो पबंधो * कोहसंजलणस्स उक्कस्सयमग्गहिदिपत्तयं कस्स ? ६६६. सुगमं । * उक्कस्सयमग्गहिदिपत्तयं जहा पुरिमाणं कायव्वं । ६७०. जहो पुरिमाणं मिच्छत्तादिकम्माणमग्गहिदिपत्तयस्स उक्स्ससामित्तं परूविदं तहा कोहसंजलणस्स वि परूवेयव्वं, विसेसाभावादो। एवमेदस्स समप्पणं कादूण संपहि सेसाणं द्विदिपत्तयाणमुक्कस्ससामित्तविहाणमुवरिमगंथावयारो ® उक्कस्सयमधाणिसेयडिदिपत्तयं कस्स ? ६७१. सुगम । * कसाए उवसामित्ता पडिवदिदूण पुणो अंतोमुहुत्तेण कसाया ६६६७. यह सूत्र सुगम है। * यदि भयका उत्कृष्ट स्वामित्व करता है तो उसे जुगुप्साको अवेदक करना चाहिये। यदि जुगुप्साका उत्कृष्ट स्वामित्व करता है तो उसे भयका अवेदक करना चाहिये। ६६६८. यह सूत्र भी सुगम है। इस प्रकार पहले जिनके विशेष व्याख्यानकी सूचना की रही उनका विशेष कथन समाप्त करके अब शेष कर्मो के उत्कृष्ट स्वामित्वका कथन करनेके लिये आगेका सूत्र कहते हैं * क्रोध संज्वलनके उत्कृष्ट अग्रस्थितिप्राप्त द्रव्यका स्वामी कौन है। $ ६६९. यह सूत्र सूगम है। * मिथ्यात्व आदिके समान क्रोधसंज्वलनके उत्कृष्ट अग्रस्थितिप्राप्ति द्रव्यका स्वामी करना चाहिए। ६६७०. जिस प्रकार मिथ्यात्व आदि कर्मोके अस्थितिप्राप्तके उत्कृष्ट स्वामित्वका कथन किया है उसी प्रकार क्रोधसंज्वलनका भी कथन करना चाहिये, क्योंकि इसके कथनमें कोई विशेषता नहीं है। इस प्रकार इसका प्रमुखतासे कथन करके अब शेष स्थितिप्राप्तोंके उत्कृष्ट स्वामित्वका कथन करनेके लिये आगेका ग्रन्थ आया है * उत्कृष्ट यथानिषेक स्थितिप्राप्त द्रव्यका स्वामी कौन है ? ६६७१. यह सूत्र सुगम है। * जो जीव कषायोंका उपशम करके उससे च्युत हुआ। फिर दूसरी बार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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