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________________ गा० २२ ] पदेसविहत्तीए द्विदियचूलियाए सामित्त पत्ताहियघादत्तादो। रूवूणत्तमेत्थाणवेक्खिय संपुण्णोकडुक्कड्डणभागहारमेत्तो पक्खेवपडिभागो घेत्तव्यो । एवं चरिमणिसेयादो दुचरिमणिसेयस्स विसेसो परूविदो । ६६३६. संपहि दुचरिमादो तिचरिमस्स अहियदव्वपमाणाणुगमं कस्सामो । तं जहा–दुचरिमणिसेयं दोपडिरासीओ काऊण तत्थेयमोकडकडणभागहारेण खंडिय पडिरासीकयरासीए उवरि पक्खित्ते तिचरिमणिसेओ उप्पज्जइ त्ति एत्थ चरिमणिसेयादो अहियदव्वपमाणं दो पक्खेवा एओ च पक्खेवपक्खेवो होइ । एदं पि पुव्वं व पडिरासिय तत्थेयमोकड कडूणभागहारेण खंडिय तत्थेयखंडं तत्थेव पक्वित्ते चउचरिमणिसेओ उपज्जइ ति तत्थ वि जहण्णदव्वादो अहियपमाणं तिण्णि पक्खेवा तिण्णि चेव पक्खेवपक्खेवा अण्णेणो च तप्पक्खेवो लब्भइ। तहा पंचचरिमे वि पुव्वविहाणेण चत्तारि पक्खेवा छ पक्खेवपक्खेवा चत्तारि च तप्पक्खेवा अण्णेगा च चुग्णी होइ । पुणो तत्तो उवरिमे वि पंच पक्खेवा दस पक्खेवपक्खेवा तत्तियमेत्ता चेव तप्पक्खेवा पंच चुण्णीओ अवरेगा च चुण्णाचुण्णी अहियसरूवेण लभंति । एवं जत्तियमद्धाणमुवरि चढिय विसेसगवेसणा कीरइ चरिमणिसेयादो तत्थ तत्थ रूवूणचढिददाणमेत्ता पक्खेवा दुरूवूणचढिददाणसंकलणमेत्ता च पक्वेवपक्खेवा समाधान- एक कम अपकर्षण-उत्कर्षण भागहार है। शंका-ऐसा क्यों है ? समाधान—क्योंकि वह एक बार अधिक घातसे प्राप्त हुआ है। यद्यपि ऐसा है तो भी एक कमकी विवक्षा न करके यहाँ पर प्रक्षेपका प्रतिभाग सम्पूर्ण अपकर्षण-उत्कर्षण भागहारप्रमाण लेना चाहिये। इस प्रकार चरम निषेकसे द्विचरम निषेकके विशेषका कथन किया। $ ६३६. अब द्विचरम निषेकसे त्रिचरम निषेकमें जो अधिक द्रव्य है उसके प्रमाणका विचार करते हैं। वह इस प्रकार है-द्विचरम निषेककी दो प्रति राशियाँ स्थापित करो। फिर उनमेंसे एकमें अपकर्षण-उत्कर्षण भागहारका भाग दो। भाग देने पर जो लब्ध आवे उसे अलग स्थापित की गई दूसरी राशिमें मिला देने पर विचरम निषेक उत्पन्न होता है, अतः उस त्रिचरम निषेकमेंचरम निषेकसे अधिक द्रव्यका प्रमाण दो प्रक्षेप और एक प्रक्षेपप्रक्षेप है। अब इस त्रिचरमनिषेककी भी पूर्ववत् प्रतिराशि करो। फिर उनमेंसे एकमें अपकर्षण-उत्कर्षण भागहारका भाग दो। भाग देनेसे जो एक भाग लब्ध आवे उसे अलग स्थापित की गई उसी राशिमें मिला देनेपर चतुश्चरम निषेक उत्पन्न होता है, अतः उस निषेकमें भी जघन्य द्रव्यसे जो अधिक द्रव्य है उसका प्रमाण तीन प्रक्षेप, तीन प्रक्षेप-प्रक्षेप और एक तत्प्रक्षेप प्राप्त होता है। इसी प्रकार पाँचवें चरमनिषेकमें भी पूर्व विधिसे अधिक द्रव्यका प्रमाण चार प्रक्षेप, छह प्रक्षेप-प्रक्षेप, चार तत्प्रक्षेप और एक चूर्णि होता है। फिर इससे ऊपरके निषेकमें भी पाँच प्रक्षेप, दस प्रक्षेप-प्रक्षेप, उतने ही अर्थात् दस ही तत्प्रक्षेप, पाँच चूर्णि और एक चूणिचूणि अधिक द्रव्य रूपसे उपलब्ध होते हैं। इस प्रकार जितना अध्वान ऊपर जाकर अधिक द्रव्यका विचार करते हैं अन्तिम निषेकसे वहाँ एक कम ऊपर गये हुए अध्वान प्रमाण प्रक्षेप, दो कम ऊपर गये हुए अध्वानके संकलनप्रमाण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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