SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 407
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३८० जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ पदेसविहत्ती ५ ६२२. एवमेदं परूविय संपहि एदस्सेव उक्कस्सअधाणिसेयसंचयस्स पमाणगवेसणहमुवरिमो मुत्तपबंधो * एक्कस्स समयपबद्धस्स एक्किस्से हिदीए जो उक्कस्सो अधाणिसेो तत्तो केवडिगुणं उक्कस्सयमधाणिसेयहिदिपत्तयं ।। ५२३. णिरुद्ध हिदीदो समयुत्तरजहण्णाबाहमेत्तमोसक्कियूगावहिदो जो समयपबद्धो उक्कस्सनोगेण बद्धो तस्स एयस्स समयपबद्धस्स एकिस्से जहण्णाबाहाबाहिरहिदीए जो उक्कस्सओ अधाणिसेो तत्तो केवडिगुणं पलिदोवमासंखेजदिभागमेत्तसगुक्कस्ससंचयका लब्भंतरगलिदावसिहणाणासमयपबद्धप्प यमुक्कस्सयमधाणिसेयहिदिपतयं ? किं संखेज्जगुणमाहो असंखेज्जगुणमिदि पुच्छिदं होइ । एवं पुच्छिदे एवदिगुणमिदि परूविस्तमाणो तस्सेव ताव गुणयारस्स पमाणपरूवणहमवहारकालप्पाबहुअंणिदरिसण तरूवेण भणदि * तस्स णिदरिसणं । ६२४. तस्स गुणयारस्स सरूवपदंसह णिदरिसणं भणिस्सामो ति वुत्तं होइ। & जहा। है जिसे पल्यके असंख्यात प्रथम वर्गमूलप्रमाण बतलाया है। इसीलिये यहाँ पर विवक्षित स्थितिमें वेदककालके भीतरके यथानिषकोंका सद्भाव नियमसे बतलाया है। $६२२. इस प्रकार इसका कथन करके यथानिषेकके इसी उत्कृष्ट प्रमाणका विचार करनेके लिये आगेका सूत्र कहते हैं * एक समयप्रबद्धकी एक स्थितिमें जो उत्कृष्ट यथानिषेक है उससे यह उत्कृष्ट यथानिषेकस्थितिपाप्त द्रव्य कितना गुणा है ? ६६२३. विवक्षित स्थितिसे एक समय अधिक जघन्य आबाधाप्रमाण स्थान पीछे जाकर उत्कृष्ट योगसे बाँधा गया जो समयप्रबद्ध अवस्थित है उस एक समयप्रबद्धकी जघन्य आबाधाके बाहरकी एक स्थितिमें जो उत्कृष्ट यथानिषेक प्राप्त होता है उससे पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण अपने उत्कृष्ट संचयकालके भीतर गलाकर शेष बचा हुआ नाना समयप्रबद्धसम्बन्धी उत्कृष्ट यथानिषेकस्थितिप्राप्त द्रव्य कितना गुणा होता है ? क्या संख्यातगुणा होता है या असंख्यातगुणा होता है, इस प्रकार इस सूत्र द्वारा यह बात पूछी गई है। इस प्रकार पूछने पर इतना गुणा होता है यह बतलानेकी इच्छासे सर्व प्रथम उसी गुणकारके प्रमाणका कथन करनेके लिये पहले उदाहरणरूपमें अवहारकालका अल्पबहुत्व कहते हैं- . * उसका उदाहरण देते हैं। ६६२४. अब उसके अर्थात् गुणकारके स्वरूपको दिखलानेके लिए उदाहरण कहेंगे यह उक्त कथनका तात्पर्य है। * यथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy