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________________ जयधवला सहिदे कसायपाहुडे [ पदेसविहत्ती ५ पयदसमयपबद्धस्स णिसेयदंसणादो । एदं च अवस्थुवियप्पाणमं तदीवयभावेण परूविदं, तेण जहण्णाबाहामेत्ता चेव जहाणिसेयस्स अवत्थुवियप्पा परूवेयव्वा । * समयुत्तराए बाहाए एवदिमचरिमसमयपबद्धस्स अधाणिसेो अत्थि । ३७८ ९६२०. कुदो ? आबाहामेत्तमइच्छाविय पयदसमयपबद्धस्स णिरुद्ध डिदीए णिसेय सणादो। एत्थ जहण्णग्गहणेणाणुवट्टमाणेण आबाहा विसेसियव्वा । * तत्तो पाए जाव असंखेज्जापि पलिदोवमवग्गमूलाणि तावदिमसमयपबद्धस्स अधाणिसे णियमा अस्थि । ९६२१. तत्तो समयुत्तरजहण्णाबाहमेत्तमोसक्किदूण बद्धसमयपबद्धादो पहुडि हेमिसेस से ससमयपबद्धाणं जहाणिसेओ णिरुद्ध हिदीए नियमा अस्थि जाव असंखेज्जाणि पलिदो म पढमवग्गमूलाणि हेदो श्रसरियूण बद्धसमयपबद्धस्स जहाणिसेओ उससे लेकर ऊपरकी स्थितियों में प्रकृत समयप्रबद्ध के निषेक देखे जाते हैं । अवस्तुविकल्पों के अन्तदीप रूप से इस विकल्पका कथन किया है । इसलिये यथानिषेकस्थितिप्राप्तके जघन्य आबाधाप्रमाण वस्तुविकल्पोंका कथन करना चाहिये । विशेषार्थबाधा कालके भीतर निषेकरचना नहीं होती है ऐसा नियम है और यहाँ पर यथानिषेकस्थितिप्राप्त द्रव्यको उदय समय में प्राप्त करना है । किन्तु यह तभी हो सकता है जब जघन्य बाधा के सब समय गल जावें । इसलिए यहाँ पर जघन्य आबाधा के भीतर किसी भी समय में बँधे हुए यथानिषेकस्थितिप्राप्त द्रव्यके अस्तित्वका विवक्षित स्वामित्व समय में निषेध किया है । सूत्रमें अन्तदीपक रूपसे मात्र अन्तिम विकल्पका निर्देश किया है, इसलिए उससे बाधा कालके भीतर बन्धको प्राप्त होनेवाले उन सब यथानिषेक स्थितिप्राप्त द्रव्योंका ग्रहण कर लेना चाहिए, क्योंकि उनका विवक्षित स्वामित्व समय में प्राप्त होना सम्भव नहीं है । * आबाधा के एक समय अधिक होने पर उस अन्तिम समयमबद्धका यथानिषेक विवक्षित स्थिति में है । ९ ६२०. क्योंकि आबाधाप्रमाण कालको अतिस्थापनारूप से स्थापित करके प्रकृत समयप्रबद्धका निषेक विवक्षित स्थितिमें देखा जाता है । इस सूत्र में जघन्य पदके ग्रहण द्वारा उसकी अनुवृत्ति करके उससे आबाधाको विशेषित करना चाहिये । * फिर वहाँसे लेकर पल्यके असंख्यात कालके भीतर जितने समयप्रबद्ध बँधते हैं उनका नियमसे है । प्रथम वर्गमूलप्रमाण पीछेके यथानिषेक विवक्षित स्थिति में $ ६२१. उससे अर्थात् एक समय अधिक जघन्य अबाधाप्रमाण स्थान पीछे जाकर जो समयबद्ध बँधता है उससे लेकर पल्य के असंख्यात प्रथम वर्गमूलप्रमाण स्थान नीचे जाकर बँधे हुए समयबद्ध यथानिषेक तकके पीछेके बाकी सब समयप्रबद्धों का यथानिषेक विवक्षित स्थिति में नियमसे है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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