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________________ गा० २२ ] पदेसविहत्तीए डिदियचूलियाए सामित्तं ३७५ परूवेयव्वं, अण्णहा एक्कक्क हिदिपत्तयं चउबिहमिदि परूवणाए विहलत्तप्पसंगादो। तं च उकस्सादो परमाणूणादिकमेणावहिदं गिरंतरसरूवेण जाव एओ परमाणु ति एदस्स जाणावणहमेसा परूवणा ति सुसंबद्धमेदं । ६१३. संपहि एवं परूविदसंबंधस्सेदस्स मुत्तस्सत्थविवरणं कस्सामो। तं जहा-कम्मद्विदिपढमसमए जं बद्धं मिच्छत्तपदेसग्गं तं सत्तरिसागरोवमकोडाकोडिमेत्तकम्महिदीए असंखेज्जे भागे अच्छिय पुणो पलिदोवमासंखेजदिभागपमाणमुक्कस्सणिल्लेवणकालमत्थि त्ति सुद्ध होऊण गच्छइ । तत्तो उपरिमाणंतरसमए वि सुद्धं होऊण गच्छइ । एवं गिरंतरं गंतूण जाव कम्मद्विदिचरिमसमए वि सुद्धं होदूण तस्स गमणं संभवइ । पुणो तमेवं णिल्लेविज्जमाणं कम्महिदीए पुग्णाए एक्को वि परमाण होयूणावहाणं लहइ। किं कारणमिदि भणिदे णिरुद्धसमयपबद्धस्स एगेण वि परमाणुणा विणा जइ कम्महिदिचरिमसमओ सुण्णो होऊण लब्भइ तो गलिदसेसैगपरमाणुणा सहियत्तं मुटु लहामो त्ति पत्थि एत्थ संदेहो। एवं दो वि परमाणू लम्भंति । एदेण कारणेण अग्गहिदिपत्त यमेको वा दो वा पदेसा ति सुत्ते उत्तं । एवमेगादि-एगुत्तरियाए वडीए ताव एवं णेदव्वं जाव समयपबद्धस्स अग्गहिदीए जत्तियमुक्कस्सयं पदेसग्गं तं णिसित्तं ति । ६६१४. एत्थ समयपबद्धस्से त्ति भणिदे सण्णिपंचिंदियपज्जत्तएण उक्कस्सचाहिये, अन्यथा एक एक स्थिति प्राप्तको जो चार चार प्रकारका बतलाया है सो उस कथनको विफलताका प्रसंग प्राप्त होता है। और वह अनुत्कृष्ट उत्कृष्टमेंसे निरन्तर एक एक परमाणुके घटाने पर एक परमाणुके प्राप्त होने तक होता है, इस प्रकार इस बातका ज्ञान करानेके लिये यह प्ररूपणा की है, इसलिये यह कथन सुसम्बद्ध है। ६६१३. इस प्रकार इस सूत्रके सम्बन्धका कथन करके अब उसके अर्थका कथन करते हैं। वह इस प्रकार है-कर्मस्थितिके प्रथम समयमें मिथ्यात्वका जो द्रव्य बंधा है वह सत्तर कोड़ाकोड़ी सागरप्रमाण कमस्थितिके असंख्यात बहुभाग तक रहता है फिर पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण उत्कृष्ट निलेपन कालके भीतर उसका अभाव हो जाता है। या उससे एक समय और जाने पर उसका अभाव होता है। इस प्रकार निरन्तर एक एक समयके जाने पर कर्मस्थितिके अन्तिम समयमें भी अभाव होकर उसका गमन सम्भव है। यद्यपि वह इस प्रकार अभावको प्राप्त होता है तो भी कभी कर्मस्थितिके अन्तिम समयमें एक परमाणु भी शेष रहता है। कारण यह है कि विवक्षित समयप्रबद्धके एक परमाणुके बिना भी यदि कर्मस्थितिका अन्तिम समय शून्यरूपसे प्राप्त हो सकता है तो इसमें जरा भी सन्देह नहीं कि अन्य सब परमाणुओंको गलाकर शेष बचे एक परमाणुके साथ भी कर्मस्थितिका वह अन्तिम समय प्राप्त किया जा सकता है। इसी प्रकार कर्मस्थितिके अन्तिम समयमें दो परमाणु भी प्राप्त होते हैं। इसी कारणसे सूत्रमें 'अग्गद्विदिपत्तयं एक्को वा दो वा पदेसा' यह वचन कहा है। इस प्रकार उत्तरोत्तर एक एक परमाणुको बढ़ाते हुए अग्रस्थितिमें जितना उत्कृष्ट द्रव्य निक्षिप्त होता है उसके प्राप्त होने तक ले जाना चाहिये। ६६१४. यहाँ सूत्रमें जो 'समयपबद्धस्स' यह पद दिया है सो उससे संज्ञी पञ्चेन्द्रिय wwwwwwwwwwwwwwwwwwwww. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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