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________________ गा० २२ ] उत्तरपयड पदेस वित्तीए कालपरूवणा १३ १८. पंचि०तिरि० अपज्ज० छव्वीसं पयडीणं उक्क० पदे० जहण्णुक• एगस० । अणुक० ज० खुद्धाभव० समऊणं, उक्क० तो ० | सम्मत्त सम्मामिच्छत्ताणमेवं चेव । वरि अणुक० ज० एस० । एवं मणुस अपज्जत्ताणं । १६. मणुसतियम्मि अट्ठावीसं पयडीणं उक्क० पदे० जहण्णुक० एगस० । अणुक० ज० खुद्धा • अंतो० समऊणं, उक्क० सगहिदी । णवरि सम्म० सम्मामि०अणताणु ० चउक्क०- - इत्थिवेद० अणुक्क० ज० एस० । चदुसंज० - पुरिस० अणुक्क० ज० तो ० । 1 प्रमाण और अन्तर्मुहूर्त कहा है तथा उत्कृष्ट काल पूर्व कोटिपृथक्त्व अधिक तीन पल्य कहा है। मात्र अनन्तानुबन्धचतुष्क और स्त्रीवेदकी अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति सामान्य तिर्यभ्वों के समान यहाँ भी बन जाती है, इसलिए यहाँ इसका जघन्य काल एक समय कहा है । सम्यक्त्व और सम्यग्यिथ्यात्व की प्ररूपणा स्त्रीवेद के समान घटित हो जाती है, इसलिए उसे उसकी प्ररूपणा के समान जानने की सूचना की है । १८. पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च अपर्याप्तकों में छब्बीस प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल एक समय कम क्षुल्लक भवग्रहणप्रमाण और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भङ्ग इसी प्रकार है । इतनी विशेषता है कि इनकी अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल एक समय है । इसी प्रकार मनुष्य अपर्याप्तक जीवों में जानना चाहिए । 1 1 विशेषार्थ उत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका एक समय काल कम कर देने पर यहाँ अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल प्राप्त होता है और पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च पर्याप्त स्थिति अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है, इसलिए इन जीवोंमें छब्बीस प्रकृतियोंकी अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल एक समय कम क्षुल्लक भवग्रहणप्रमाण और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त प्रमाण कहा है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका अन्य सब काल इसी प्रकार बन जाता है, इसलिए उसे इसी प्रकार जानने की सूचना की है। मात्र इनकी अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका उद्वेलना की अपेक्षा एक समय काल भी प्राप्त होता है, इसलिए इनकी उक्त विभक्तिका जघन्य काल अलग से एक समय कहा है। मनुष्य अपर्याप्तकों में यह कालप्ररूपणा अविकल बन जाती है, इसलिए उनमें पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्तकों के समान जानने की सूचना की है। १६. मनुष्यत्रिक में अट्ठाईस प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल एक समय कम क्षुल्लक भवग्रहप्रमाण है और एक समय कम अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है और उत्कृष्ट काल अपनी कार्यस्थितिप्रमाण है । इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व अनन्तानुबन्धीचतुष्क और स्त्रीवेदी अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल एक समय है। तथा चार संज्वलन और पुरुषवेद की अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है I विशेषार्थ - सब प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका एक समय काल अपनी अपनी जघन्य स्थितिमेंसे कम कर देने पर अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल प्राप्त होता है, इसलिए यहाँ पर अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल सामान्य मनुष्यों में एक समय कम क्षुल्लक भव प्रहणप्रमाण और शेन दो प्रकार के मनुष्यों में एक समय कम अन्तर्मुहूर्तप्रमाण कहा है। इनमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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