________________
जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ तिण्णि पलिदोवमाणि पलिदोवमस्स असं० भागेण सादिरे ।
१७. पंचिंदियतिरिक्खतियम्मि छव्वीसं पयडीणमुक्क० पदे० जहण्णुक्क० एगस० । अणुक्क० ज० खुदा० अंतोमु०, अणंताणु०चउक्क०-इत्थिवेदाणमेगस०, उक्क० सव्वासिं तिण्णि पलिदोवमाणि पुवकोडिपुधत्तेणब्भहियाणि । सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणमित्थिवेदभंगो। अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्यका असंख्यातवाँ भाग अधिक तीन पल्य प्रमाण है।
विशेषार्थ-यहाँ सब कर्मोंकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति अपने अपने स्वामित्त्र के अनुसार एक समयके लिए होती हैं, इसलिए इसका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा है। प्रागेकी मार्गणाओंमें भी इसी प्रकार जानना चाहिए, इसलिए आगे सब कर्माकी मात्र अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिके कालका स्पष्टीकरण करेंगे । तिर्यञ्चोंमें जघन्य प्रायु क्षुल्लक भबग्रहणप्रमाण है और कायस्थिति अनन्त काल प्रमाण है, इसलिए इनमें छब्बीस प्रकृतियोंकी अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल क्षुल्लक भवग्रहणप्रमाण और उत्कृष्ट अनन्त काल कहा है। मात्र यहाँ अनन्तानुबन्धीचतुष्क और स्त्रीवेदकी अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल एक समय भी बन जाता है, इसलिए इसका अलगसे निर्देश किया है। जो स्त्रीवेदकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति करने के बाद एक समय तक तिर्यञ्चोंमें रहकर देव हो जाता है उसके स्त्रीवेदकी अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल एक समय बन जाता है और जिस तियञ्चने अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी विसंयोजना करके तियश्च पर्यायमें रहनेका काल एक समय शेष रहने पर सासादनगुणस्थान प्राप्त करके उससे संयुक्त हुआ है उसके अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल एक समय बन जाता है। तिर्यञ्चों में सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल एक समय उद्वेलनाकी अपेक्षा बन जाता है, इसलिए इसका जघन्य काल एक समय कहा है। सम्यक्त्वकी अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल एक समय कृतकृत्यवेदक सम्यक्त्वकी अपेक्षा भी बन जाता है इतना यहां विशेष जानना चाहिए। तथा जो तिर्यञ्च पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण काल तक इनकी उद्वेलना करते हुए अन्तमें तीन पल्यकी आयुके साथ उत्तम भोगभूमिमें उत्पन्न होते हैं और वहाँ अधिकतर समय तक सम्यक्त्व के साथ रहते हुए इनकी सत्ता बनाये रखते हैं उनके इस सब कालके भीतर उक्त दोनों प्रकृतियोंकी सत्ता बनी रहती है, इसलिए इनकी अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भाग अधिक तीन पल्य कहा है ।
६ १७. पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चत्रिकमें छब्बीस प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल तियश्चोंमें क्षुल्लक भवग्रहणप्रमाण और शेष दो में अन्तर्मुहूर्त है। किन्तु अनन्तानुबन्धीचतुष्क और स्त्रावेदकी अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल एक समय है और सबका उत्कृष्ट काल पूर्वकोटि पृथक्त्व अधिक तीन पल्य है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भङ्ग स्त्रीवेदके समान है।
विशेषार्थ-पञ्चन्द्रिय तिर्यञ्चोंकी जघन्य स्थिति क्षुल्लक भवग्रहणप्रमाण और शेष दो की अन्तर्मुहूर्त है। तथा सबकी कायस्थिति पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक तीन पल्य है, इसलिए इनमें छब्बीस प्रकृतियोंकी अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल क्रमसे क्षुल्लक भवग्रहण
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org.