SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 394
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गा० २२ ] पदेसविहत्तीए द्विदियचूलियाए समुकित्तणा ३६७ तदो उकस्सडिदिपत्तयादीणं सरूवविसेसजाणावणहूँ पदेसविहत्तीए चूलियासरूवेण एसो अहियारो समोइण्णो ति घेत्तव्यो। संपहि एत्थ संभवंताणमणियोगद्दाराणं परूवणहमुत्तरसुत्तं भणइ ॐ तत्थ तिगिण अणियोगद्दाराणि । तं जहा-समुकित्तणा सामित्तमप्पाबहुअंच। ६५६८. तत्थ ठिदियं ति एदस्स बीजपदस्स अत्यविहासाए कीरमाणाए तिणि अणियोगदाराणि णादव्वाणि भवंति । काणि ताणि ति सिस्साभिप्पायं तं जहा ति आसंकिय तेसि णामणिद्देसो कीरदे समुक्त्तिणा इच्चाइणा । तत्थ समुक्त्तिणा णाम उक्कस्सहिदिपत्तयादीणमस्थित्तमेत्तपरूषणा । तत्थ समुकित्तिदाणं संबंधविसेसपरिक्खा सामित्तं णाम । तेसिं चेव थोवबहुत्तपरिक्खा अप्पाबहुअमिदि भण्णदे। एवमेत्य तिणि अणियोगद्दाराणि होति ति परूविय संपहि तेहि पयदस्साणुगमं कुणमाणो जहा उद्देसो तहा जिद्द सो त्ति णायादो समुक्त्तणाणुगममेव ताव विहासिदुकामो इदमाह समुकित्तणाए अत्थि उक्कस्सहिदिपत्तयं णिसेयद्विदिपत्तयं अधाणिसेयहिदिपत्तयं उदयहिदिपत्तयं च । $ ५६६. सव्वेसि कम्माणमेदाणि चत्तारि वि हिदिपत्तयाणि अत्थि ति इसलिये उत्कृष्ट स्थितिप्राप्त आदिकके विशेष स्वरूपका ज्ञान करानेके लिये प्रदेशविभक्तिके चूलिकारूपसे यह अधिकार आया है यह तात्पर्य यहाँ लेना चाहिये। अब यहाँ पर जो अधिकार सम्भव हैं उनका कथन करनेके लिये आगेका सूत्र कहते हैं * इस प्रकरणमें तीन अनुयोगद्वार हैं । यथा-समुत्कीर्तना, स्वामित्व और अल्पबहुत्व । ६५६८. यहाँ पर अर्थात् 'ठिदियं' इस बीजपदके अर्थका विवरण करते समय तीन अनुयोगद्वार ज्ञातव्य हैं। वे तीन अनुयोगद्वार कौन कौन हैं इस प्रकार शिष्यके अभिप्रायको 'तं जहा' पदद्वारा प्रकट करके समुत्कीर्तना इत्यादि पदोंद्वारा उनका नामनिर्देश किया है। इनमेंसे उत्कृष्ट स्थितिप्राप्त आदि कर्मपरमाणुओंके अस्तित्वमात्रका कथन करना समुत्कीर्तना है। समुत्कीतना अनुयोगद्वारमें जिनका निर्देश किया है उनके सम्बन्धविशेषकी परीक्षा करना स्वामित्व है और उन्हींके अल्पबहुत्वकी परीक्षा करना अल्पबहुत्व कहलाता है। इस प्रकार इस प्रकरणमें तीन अनुयोगद्वार होते हैं इसका कथन करके अब उनके द्वारा प्रकृत विषयका अनुशीलन करते हुए 'उद्देश्यके अनुसार निर्देश किया जाता है' इस न्यायके अनुसार समुत्कीर्तना अनुयोगद्वारका ही विवरण करनेके लिये आगेका सूत्र कहते हैं ___ * समुत्कीर्तनाकी अपेक्षा उत्कृष्ट स्थितिप्राप्त, निषेकस्थितिप्राप्त, अधःनिषेकस्थितिप्राप्त और उदयस्थितिप्राप्त कर्मपरमाणु हैं । $ ५९९. सब कर्मों के ये चार स्थितिप्राप्त होते हैं यह इसका तात्पर्य है। इस प्रकार इस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy