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गा० २२] पदेसविहत्तीए झीणाझीणचूलियाए अप्पाबहुअं
३६१ ६५८६. संपहि एदेण मुत्तेणारइ-सोयाणं पि उदीरणोदएण विणा पत्तजहण्णसामित्ताणमप्पणाए अइप्पसत्ताए तत्थ विसेसपदुप्पायणसुत्तरमुत्तमाह
* णवरि अरइ-सोगाणं जहणणयमुदयादो झीणहिदियं थोवं । $ ५६०. कुदो ? एयणिसेयपमाणत्तादो ।
* सेसाणि तिगिण वि झीपडिदियाणि तुल्लाणि विसेसाहियाणि । .. ६५६१. जइ वि तिण्हमेदासि पि झीणहिदियस्स खवियकम्मंसियपच्छायदोवसंतकसायचरदेवविदियसमए उदयावलियपविढयणिसेयं चेव घेत्तूण जहण्णसामित्तं जादं तो वि अंतोमुत्तमुवरि गंतूण जादजहण्णभावादो पुब्बिल्लेयणिसेयदव्वादो विसेसाहियत्तं ण विरुज्झदे, ओइण्णद्धाणमेत्तगोवुच्छविसेसाणमहियत्तदसणादो। एवमहिप्पायंतरमवलंबिय अप्पाबहु अमेदेसि परूविय संपहि सामित्ताणुसारेण थिवुक्कसंकमं पहाणीकाऊणप्पाबहुअपरूवणहमिदमाहप्रकृतियाँ हैं जिनके विषयमें उक्त नियम लागू नहीं होता यह बात अगले सूत्र द्वारा स्वयं चूर्णिसूत्रकार स्पष्ट करनेवाले हैं। किन्तु स्त्रीवेद और नपुंसकवेद ये दो प्रकृतियाँ ऐसी हैं जिनमें उक्त प्रकारसे अल्पबहुत्व घटित नहीं होता है।
६५८६. अब इस सूत्र द्वारा उदीरणोदयके विना अरति और शोक इन प्रकृतियोंमें भी जघन्य स्वामित्वका अतिप्रसंग प्राप्त हुआ, इसलिये इस विषयमें विशेष कथन करनेके लिये आगेका सूत्र कहते हैं
* किन्तु इतनी विशेषता है कि अरति और शोकका उदीयकी अपेक्षा झीनस्थितिवाला जघन्य द्रव्य थोड़ा है।
६५६०. क्योंकि इसका प्रमाण एक निषेक है।
* शेष तीनों झीनस्थितिवाले द्रव्य तुल्य होते हुए भी उससे विशेष अधिक हैं।
६५९१. यद्यपि क्षपितकाशकी विधिसे आकर जो उपशान्तकषायचर देव हुआ है उसके दूसरे समयमें उदयावलिके भीतर प्रविष्ट हुए एक निषेककी अपेक्षा अपकर्षणादि तीनोंसे ही झीनस्थितिवाले द्रव्यका जघन्य स्वामित्व होता है तथापि अन्तर्मुहूर्त ऊपर जाकर उदयकी अपेक्षा जघन्यभावको प्राप्त हुए पूर्वोक्त एक निषेकके द्रव्यसे इसे विशेष अधिक माननेमें कोई विरोध नहीं आता है, क्योंकि जितने स्थान नीचे उतरकर अपकर्षणादिकी अपेक्षा जघन्य स्वामित्व प्राप्त है वहाँ उतने गोपुच्छविशेषोंकी अधिकता देखी जाती है।
विशेषार्थ-उक्त कथनका यह आशय है कि अपकर्षणादि तीनकी अपेक्षा जघन्य स्वामित्व उपशान्तकषायचर देवके दूसरे समयमें प्राप्त हो जाता है और उदयकी अपेक्षा जघन्य स्वामित्व अन्तर्मुहूर्त बाद प्राप्त होता है। अब यहाँ जितना काल आगे जाकर उदयकी अपेक्षा जघन्य स्वामित्व प्राप्त होता है उतने गोपुच्छविशेषोंकी अर्थात् चयोंकी हानि हो जाती है, अतः अपकर्षणादि तीनकी अपेक्षा झीनस्थितिवाला जो जघन्य द्रव्य होता है वह उदयकी अपेक्षा झीनस्थितिवाले जघन्य द्रव्यसे साधिक होता है यह सिद्ध हुआ ।
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