SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 378
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ anvvv गा० २२ ] पदेसविहत्तीए झीणाझीणचूलियाए सामित्तं ३५१ उदयावलियबाहिरे णिक्खित्ता । से काले दुसमयदेवस्स एया हिदी अरहसोगाणमुदयावलियं पविटा ताधे अरदि-सोगाणं जहणणयं तिण्हं पि झीणहिदियं । ___५७१. एत्य एइंदियकम्मेण जहण्णएणे त्ति उत्ते अभवसिद्धियपाओग्गजहण्णसंतकम्मस्स गहणं कायव्वं, दोण्हमेदेसि भेदाभावादो। सेसावयवा बहुसो परूविदत्तादो सुगमा । णवरि तिण्णिवारे कसाए उवसामेयूणे त्ति वयणं चउत्थकसायुवसामणवारस्स विसेसियपरूवण । चउत्थवारे कसाए उवसायण उवसंतकसाओ कालगदो देवो तेत्तीससागरोवमिओ जादो त्ति भणंतस्साहिप्पाओ उवसमसेढीए कालगदो अहमिंददेवेसु च उपज्जइ, अण्णत्थुक्कस्ससुकलेस्साए असंभवादो ति । हंदि जाए लेस्साए परिणदो कालं करेइ तिस्से जत्थ संभवो, तत्थेव णियमेणुप्पज्जइ, ण लेस्संतरविसईकए विसए ति । कुदो एस णियमो ? सहावदो। ताधे चेव तत्थुप्पण्णपढमसमए हस्स-रदीओ ओकड्डिदाओ उदयादिणिक्खित्ताओ ति एदेण देवेमुप्पण्णपढमसमयप्पहुडि अंतोमुहुत्तकालं हस्स-रदीणं उदयावलिके बाहर निक्षेप किया। तदनन्तर इस देवके दूसरे समयमें स्थित होनेपर अरति और शोककी एक स्थिति जब उदयावलिमें प्रवेश करती है तब यह जीव अपकर्षण आदि तीनकी अपेक्षा अरति और शोकके झीनस्थितिवाले जघन्य द्रव्यका स्वामी है। $ ५७१. यहां सूत्रमें 'जो एइंदियकम्मेण जहण्णएण' कहा है सो इससे अभव्योंके योग्य जघन्य सत्कर्मका ग्रहण करना चाहिये, क्योंकि एकेन्द्रियोंके योग्य जघन्य सत्कर्म और अभव्यों के योग्य जघन्य सत्कर्म इन दोनोंमें कोई भेद नहीं है, दोनोंका एक ही अर्थ है। सत्रके शेष अवयवोंका अनेक बार प्ररूपण किया है, इसलिये वे सुगम हैं। किन्तु इतनी विशेषता है कि चौथी बार कषायके उपशमानेके सम्बन्धमें विशेष वक्तव्य होनसे सत्रमें 'तिण्णिवारे कसाए उवसामेयूण' यह वचन कहा है। फिर कुछ आगे चलकर सूत्र में 'चउत्थवारे कसाए उवसामेयूण उवसंतकसायो कालगदो देवो तेत्तीससागरोवमिओ जादो' जो यह कहा है सो ऐसा कहनेका यह अभिप्राय है कि उपशमश्रेणिमें मरकर यह अहमिन्द्र देवोंमें उन्पन्न होता है, क्योंकि अन्यत्र उत्कृष्ट शुक्ललेश्याकी प्राप्ति असम्भव है। यह निश्चित है कि मरते समय पाई जानेवाली लेश्या जहां सम्भव होती है मरकर जीव नियमसे वहीं उत्पन्न होता है। किन्तु दूसरी लेश्याके विषयभूत स्थानमें नहीं उत्पन्न होता। शंका-यह नियम किस कारणसे है ? समाधान-स्वभावसे। फिर इसके आगे सूत्रमें जो 'ताधे चेव तत्थुप्पण्णपढमसमए हस्सरदीओ ओकड्डिदाओ उदयादिणिक्खित्ताओ' यह कहा है सो इससे यह ज्ञापित किया है कि देवोंमें उत्पन्न होनेके प्रथम समयसे लेकर अन्तर्मुहूर्त कालतक नियमसे हास्य और रतिका ही उदय होता है। तथा फिर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy