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गा० २२ ] पदेसविहत्तीए झीणाझीणचूलियाए सामित्तं
३४७ ५६८. एदस्स सामित्तमुत्तस्स अत्थविवरणं कस्सामो-एसो चेव जीवो णवंसयवेदस्स सामित्तेण पुव्वपरूविदो समणंतरपरूविदासेसलक्षणोवलक्खिओ जाधे सामित्तकालं पेक्खियूण अपच्छिमं मणुस्सभवग्गहणं देसूणपुव्वकोडिपमाणं पुन्वविहाणेण गुणसेढिणिज्जिराविणाभाविसंजममणुपालियूग अंतोमुहुत्तसेसे सगाउए मिच्छत्तं गदो । एत्थ सव्वत्थ बि पुवपरूवणादो गस्थि णाणत्तं । णवरि किमहमेसो मिच्छत्तं णीदो त्ति पुच्छिदे इत्थिवेदएसुप्पायणमिदि वत्तव्वं, अण्णहा तत्थुप्पत्तीए असंभवादो । ण तत्थुप्पादो णिरत्थो, पयदसामित्तस्स सोदएण विणा विहाणाणुववत्तीदो। तमेवाहतदो वेमाणियदेवीसु उववण्णो त्ति। सेसगइपरिहारेण देवगदीए चे उप्पायणं गुणसेढिलाहरक्षण अण्णगइपाओग्गमिच्छत्तद्धाए बहुत्तेण तस्स विणासप्पसंगादो। अपज्जत्तदाए च थोवीकरण, अण्णहा तत्थ बहुदव्वसंचयावत्तीदो । भवणादिहेडिमदेवीसु उप्पाइय गेण्हामो, विसेसाभावादो ति णासंकणिज्जं, तत्थुप्पज्जमाणजीवस्स पुव्वमेव एतो तिब्वसंकिलेसावूरणेण गुणसेढिणिज्जरालाहबहुत्तभावावत्तीदो। तत्र तथोत्पन्नस्य
$५६८. अब इस स्वामित्वविषयक सूत्रके अर्थका खुलासा करते हैं-जिस जीवका पहले नपुंसकवेदके स्वामित्वरूपसे कथन कर आये हैं समनन्तर पूर्व में कहे गये सब लक्षणोंसे युक्त वही जीव जब स्वामित्वकालकी अपेक्षा अन्तिम मनुष्यभवको ग्रहण करके और पूर्व विधिके अनुसार गुणश्रोणिनिर्जराके अविनाभावी संयमका कुछ कम एक पूर्वकोटि काल तक पालन करके अपनी आयुमें अन्तर्मुहूर्त बाकी रहने पर मिथ्यात्वको प्राप्त हुआ। यहाँ सभी जगह नपुंसकवेदसम्बन्धी पूर्व प्ररूपणासे कोई भेद नहीं है।
शंका-इस जीवको मिथ्यात्वमें किसलिये ले गये हैं ?
समाधान-स्त्रीवेदियोंमें उत्पन्न करानेके लिये इसे मिथ्यात्वमें ले गये हैं, अन्यथा इसकी उत्पत्ति स्त्रियों में नहीं हो सकती।
यदि कहा जाय कि इस जीवको मिथ्यात्वमें उत्पन्न कराना निरर्थक है सो यह बात भी नहीं है, क्योंकि स्वोदयके बिना प्रकृत स्वामित्वका विधान करना नहीं बनता है और स्त्रीवेदका उदय तब हो सकता है जब इसे मिथ्यात्वमें ले जाया जाय, इसलिये इसे मिथ्यात्वमें उत्पन्न कराया है। इसी बातको बतलानेके लिये 'तदो वेमाणियदेवीसु उववरणो' यह कहा है। इसे देवगतिमें ही क्यों उत्पन्न कराया है इस प्रश्नका उत्तर देने के लिये आचार्य कहते हैं कि गुणश्रेणिजन्य लाभकी रक्षा करनेके लिये शेष गतियोंको छोड़कर देवगतिमें ही उत्पन्न कराया है, क्योंकि अन्य गतिके योग्य मिथ्यात्वका काल बहुत होनेसे वहाँ गुणश्रोणिजन्य लाभका विनाश प्राप्त होता है। दूसरे अपर्याप्त कालको कम करनेके लिये भी देवोंमें उत्पन्न कराया है, अन्यथा वहाँ बहुत द्रव्यका संचय प्राप्त होता है। यदि कहा जाय कि भवनवासिनी आदि देवियोंमें उत्पन्न कराके जघन्य स्वामित्व प्राप्त कर लेंगे, क्योंकि उससे इसमें कोई विशेषता नहीं है सो ऐसी आशंका करनी भी ठीक नहीं है, क्योंकि वहाँ उत्पन्न होनेवाले ऐसे जीवके पहले से ही तीव्र संक्लेश पाया जाता है, इसलिये इसके गुणणिजन्य बहुत लाभ नहीं बन सकता है। अतः भवनवासिनी देवियोंमें उत्पन्न न कराके वैमानिक देवियोंमें उत्पन्न कराया
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