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________________ Marrrrr. ३४६ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ पदेसविहत्ती ५ विदियादिसमएसु संकिलेससव्वहाणिदंसणादो। तम्हा एत्थेव सामित्तं गिरवजमिदि सिद्धं । * इत्थिवेदस्स जहएणयमुदयादो झीणहिदियं ? ५६७. कस्से त्ति अहियारे संबंधो कायचो, अण्णहा सुत्तत्थस्स असंपुण्णत्तप्पसंगादो । सेसं सुगमं । * एसो चेव णवुसयवेदस्स पुव्वं परविदो जाधे अपच्छिममणुस्सभवग्गहणं पुधकोडी देसूणं संजममणुपालियूण अंतोमुहत्तसेसे मिच्छत्त गयो । तदोवेमाणियदेवीसु उववरणो अंतोमुहुत्तद्धमुववरणो उकस्ससंकिलेसं गदो। तदो विकडिदाओ हिदीओ उक्कड्डिदा कम्मंसा जाधे तदो अंतोमुहुत्तद्धमकस्सइत्थिवेदस्स हिदि बंधियूण पडिभग्गो जादो। आवलियपडिभग्गाए तिस्से देवीए इत्थिवेदस्स उदयादो जहण्णयं झीणटिदियं । करनेके लिये कहते हैं परन्तु तत्त्वतः वैसा ग्रहण करना शक्य नहीं है, क्योंकि दूसरे आदि समयोंमें पूरा संक्लेश न रहकर उसकी हानि देखी जाती है, इसलिये निर्दोष रीतिसे जघन्य स्वामित्व प्रथम समयमें ही प्राप्त होता है यह बात सिद्ध होती है। विशेषार्थ-यहाँ पर उदयकी अपेक्षा नपुंसकवेदके झीनस्थितिवाले द्रव्यका जघन्य स्वामित्व किस प्रकारके एकेन्द्रियोंमें उत्पन्न होनेके प्रथम समयमें होता है इसका विशेष खुलासा टीकामें किया ही है। उसका आशय इतना ही है कि उक्त क्रमसे जो जीव आकर एकेन्द्रियोंमें उत्पन्न होता है उसके नपुंसकवेदका द्रव्य उत्तरोत्तर घटता चला जाता है और इस प्रकार अन्तमें एकेन्द्रियोंमें उत्पन्न होने पर प्रथम समयमें नपुंसकवेदका उदयगत सबसे जघन्य द्रव्य प्राप्त हो जाता है। * उदयकी अपेक्षा स्त्रीवेदके झीनस्थितिवाले जघन्य द्रव्यका स्वामी कौन है । ३५६७. इस सूत्र में 'कस्स' इस पदका अधिकार होनेसे सम्बन्ध कर लेना चाहिये, अन्यथा सूत्रका अर्थ असंपूर्ण रहेगा। शेष कथन सुगम है। ___ * नपुसकवेदकी अपेक्षा पहले जो जीव विवक्षित था वही जब अन्तिम मनुष्य भवको ग्रहण करके और कुछ कम एक पूर्वकोटि काल तक संयमका पालन करके अन्तर्मुहूर्त कालके शेष रहने पर मिथ्यात्वमें गया। फिर वैमानिक देवियोंमें उत्पन्न हुआ। फिर वहाँ उत्पन्न होनेके अन्तर्मुहूर्त काल बाद उत्कृष्ट संक्लेशको प्राप्त हुआ जिससे उसने वहाँ सम्भव उत्कृष्ट स्थितिबन्ध किया। और जब यह क्रिया की तभी प्राचीन सत्तामें स्थित कर्मोंका उत्कर्षण किया। फिर उस समयसे लेकर अन्तर्मुहूर्ते काल तक स्त्रीवेदका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध करके उत्कृष्ट संक्लेशसे निवृत्त हुआ। इस प्रकार निवृत्त हुए उस देवीको जब एक आवलि काल हो गया तब वह उदयकी अपेक्षा स्त्रीवेदके झीनस्थितिवाले द्रव्यका जघन्य स्वामी है। ____१. विकड्ढणं ति उकडणं कर्म प्र. उदय गा० २२ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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