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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे - [पदेसविहत्ती ५ पडिभागेण गहिददव्वं णिहिदं ति । एदं च पयदसामित्त विसयीकयं जहण्णदव्वं । पुणो सेसअसंखेजभागे घेत्तूणुवरिमाणंतरहिदीए असंखेजगुणं णिसिंचदि। को एत्थ गुणगारो ? असंखेज्जा लोगा । तत्तो णिसेयभागहारेण दोगुणहाणिपमाणेण विसेसहीणं णिक्खियदि जावंतरचरिमहिदि ति । पुणो अणंतरउवरिमहिदीए दिस्समाणपदेसग्गस्सुवरिं असंखेज्जगुणहीणं संछुहदि । तत्तो प्पहुडि पुव्वविहाणेण विसेसहीणं विसेसहीणं देदि जावप्पप्पणो गहिदपदेसमहिच्छावणावलियामेत्तेण अपत्तं ति ।
५४०. एत्थ विदियहिदिपढमणिसेयम्मि दिज्जमाणदव्वस्स अंतरचरिमहिदिणिमित्तपदेसग्गादो असंखेजगुणहीणत्तसाहणमिमा ताव परूवणा कीरदे । तं जहा-- अंतोकोडाकोडिमेत्तविदियहिदिसव्वदव्वमप्पणो पढमणिसेयपमाणेण फीरमाणं दिवड्डगुणहाणिमेत्तं होइ ति कट्टु दिवडगुणहाणी आयामं विदियहिदिपढमणिसेयविक्खंभं खेतमुट्टायारेण ठविय पुणो ओकड्ड कड्डणभागहारमेत्तफालीओ उड़ फालिय तत्थेयफालिं घेत्तूण दक्खिणफासे ठविदे पढमसमयमिच्छादिहीणं अंतरावूरणहमोकड्डिददव्वं खेत्तायारेण पुव्वुतायाम पुघिल्लविक्खं भादो असंखेजगुणहीणं विक्खंभं होऊण
लोकप्रतिभागसे प्राप्त हुआ एक भागप्रमाण द्रव्य समाप्त हो जाता है। यह प्रकृत स्वामित्वका विषयभूत जघन्य द्रव्य है। फिर शेष असंख्यात बहुभागप्रमाण द्रव्यमेंसे उपरिम अनन्तरवर्ती स्थितिमें असंख्यातगुणे द्रव्यका निक्षेप करता है।
शंका-यहाँ गुणकारका प्रमाण क्या है ? समाधान-- असंख्यात लोक ।
फिर इससे आगेकी स्थितिमें दो गुणहानिप्रमाण निषेकभागहारकी अपेक्षा विशेष हीन द्रव्यका निक्षेप करता है। इस प्रकार यह क्रम अन्तरकालके अन्तिम समय तक चालू रहता है। फिर इससे आगेकी उपरिम स्थितिमें दृश्यमान कर्मपरमाणुओंके ऊपर असंख्यातगुणे हीन द्रव्यका निक्षेप करता है। फिर इससे आगे अतिस्थापनावलिके प्राप्त होनेके पूर्व तक पूर्वविधिसे विशेष हीन विशेष हीन द्रव्यका निक्षेप करता है।
६५४०. अब यहाँ द्वितीय स्थितिके प्रथम निषेकमें दिया गया द्रव्य अन्तरकालकी अन्तिम स्थितिमें दिये गये द्रव्यसे जो असंख्यातगुणा हीन है सो इसकी सिद्धि करनेके लिये यह आगेकी प्ररूपणा करते हैं। जो इस प्रकार है-अन्तःकोड़ाकोड़ीप्रमाण दूसरी स्थितिमें स्थित सब द्रव्यके अपने प्रथम निषेकके बराबर हिस्से करने पर वे डेढ़ गुणहानिप्रमाण प्राप्त होते हैं ऐसा समझकर डेढ़ गुणहानिप्रमाण लम्बे और दूसरी स्थितिके प्रथम निषेकप्रमाण चौड़े क्षेत्रकी ऊर्ध्वाकाररूपसे स्थापना करो। फिर अपकर्षण-उत्कर्षणभागहारप्रमाण फालियोंको ऊपरसे नीचे तक एक रेखामें फाड़ कर उनमेंसे एक फालिको ग्रहण करके उसे दक्षिण पाश्वमें रखो। इस प्रकार रखी गई इस फालिका प्रमाण मिथ्यादृष्टियोंके प्रथम समयमें अन्तरको पूरा करनेके लिये जो द्रव्य अपकर्षित किया जाता है उतना होगा और क्षेत्रके आकार रूपसे देखने पर यह पहले जो क्षेत्रकी लम्बाई बतला आये हैं उतनी लम्बी तथा पहले बतलाये गये क्षेत्रकी चौड़ाईसे
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