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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ ५३३. सुगम । एदेण मुत्तेण सूचिदो आदेसो गदि-इंदियादिचोद्दसमग्गणासु अणुमग्गियव्यो। एत्थ अणुकस्ससामित्तं किण्ण परूविदं इदि णासंका कायव्वा, उक्कस्सपरूवणादो चेव तस्स वि अणुत्तसिद्धीदो । उक्कस्सादो वदिरित्तमणुकस्सभिदि ।
* एत्तो जहणणयं सामित्तं वत्तहस्सामो।
$ ५३४. एत्तो आणंतरं जहण्णयमोकड्ड कड्डणादिचदुण्डं झीणहिदियाणं सामित्तमणुवत्तइस्सामो त्ति पइज्जामुत्तमेदं ।
मिच्छत्तस्स जहण्णयमोकड्डणादो उक्कड्डणादो संकमणादो च झीणहिदियं कस्स?
६ ५३५. सुगममेदं पुच्छामुत्तं ।
* उवसामो छसु आवलियासु सेसासु आसाणं गो तस्स पढमसमयमिच्छाइहिस्स जहग्णयमोकड्डणादो उकडणादो संकमणादो च झीणहिदियं ।
६५३३. यह सूत्र सुगम है। इस सूत्रमें आये हुए ओघ पदसे आदेशका भी सूचन हो जाता है, इसलिये उसका गति और इन्द्रिय आदि चौदह मार्गणाओंमें विचार कर कथन करना चाहिये।
शंका-यहाँ अनुत्कृष्ट स्वामित्वका कथन क्यों नहीं किया है ?
समाधान—ऐसी आशंका करना ठीक नहीं है, क्योंकि उत्कृष्ट स्वामित्वका कथन कर देनेसे ही अनुत्कृष्ट स्वामित्वका कथन हो जाता है, क्योंकि उत्कृष्टके सिवा अनुत्कृष्ट होता है ।।
विशेषार्थ—चूर्णिसूत्रकारने केवल ओघसे अपकर्षणादि चारोंकी अपेक्षा झीनस्थित्तिक उत्कृष्ट स्वामित्वका कथन किया है और इसीलिये प्रकरणके अन्तमें 'ओघसे उत्कृष्ट स्वामित्व समाप्त हुआ' यह सूत्र रचा है। निश्चयतः इस सूत्रमें ओघ पद देखकर ही टीकामें यह सूचना की गई है कि इसी प्रकार विचार कर आदेशकी अपेक्षा भी गति आदि मार्गणाओं में इस उत्कृष्ट स्वामित्वका कथन करना चाहिये।
* अब इससे आगे जघन्य स्वामित्वको बतलाते हैं।
६५३४. अब इस उत्कृष्ट स्वामित्वके बाद अपकर्षणादि चारों झीनस्थितिवालोंके जघन्य स्वामित्वको बतलाते हैं इस प्रकार यह प्रतिज्ञासूत्र है ।
* मिथ्यात्वके अपकर्षण, उत्कर्षण और संक्रमणकी अपेक्षा झीनस्थितिवाले जघन्य कर्मपरमाणुओंका स्वामी कौन है ।
६५३५. यह पृच्छासूत्र सरल है।
* जो उपशमसम्यग्दृष्टि छह आवलियोंके शेष रहने पर सासादन गुणस्थानको प्राप्त हुआ उसके मिथ्यात्वको प्राप्त होनेपर प्रथम समयमें वह अपकर्षण, उत्कर्षण और संक्रमणकी अपेक्षा झीनस्थितिवाले जघन्य कम परमाणुओंका स्वामी है ।
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