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गा० २२] पदेसविहत्तीए झीणाझीणचूलियाए सामित्तं
३०९ ५२८. एत्थेवं सुत्तत्थसंबंधो कायव्वो-गुणिदकम्मंसियलक्खणेणागदखवगेण जाधे छण्णोकसायाणमंतरं कमेग कीरमागमतोमुहुत्तेण कदं। तेसिं चेव कम्मसाणमुदयावलियाओ उदयचज्जाओ गुणसेढिगोवुच्छाहि पुण्णाओ अवसिहाओ ताधे तत्तियमेत्तगुणसेदिगोवुच्छाओ घेत्तण तस्स जीवस्स उक्कस्सयाणि तिणि वि झीणहिदियाणि होंति ति । किमहोत्थ उदयसमयवज्जिदो, ण; उदयाभावेण परपयडीस थिवुक्केण तस्स सकंतिदंसणादो।
8 तेसिं चेव उक्करप्तयमुदयादो झीणहिदियं कस्स ? ५२६. सुगमं ।
ॐ गुणिदकम्मंसियस्त खवयस्स चरिमसमयअपुवकरणे वट्टमाणयस्स।
$ ५३०. एत्थ गुणिदकम्म सिपणिद्देसो तबिवरीयकम्मसियपडिसेहफलो। खवयणि सो उपसामयणिरायरणहो । तं पि कुदो ? तव्यिसोहीदो अणंतगुणकखवय
६५२८. यहां इस सूत्रका इस प्रकार अर्थ घटित करना चाहिये कि कोई एक जीव गुणितकाशकी विधिसे आकर क्षपक हुआ फिर जब वह क्रमसे अन्तर्मुहूर्त कालके भीतर छह नोकषायोंका अन्तर कर देता है और जब उसके उन्हीं कर्मों की गुणश्रेणिगोपुच्छाओंके द्वारा परिपूर्ण हुई उदय समयके सिवा उदयावलिप्रमाण गोपुच्छाएं शेष रह जाती हैं तब वह उतनी गुणश्रोणिगोगुच्छाओंका आश्रय लेकर अपकर्षण आदि तीनोंकी अपेक्षा झीनस्थितिवाले उत्कृष्ट कर्मपरमाणुओंका स्वामी होता है।
शंका—यहाँ उदय समयको क्यों छोड़ दिया है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि यहाँ छह नोकषायोंका उदय नहीं होनेसे उसका स्तिबुक संक्रमणके द्वारा पर प्रकृतियोंमें संक्रमण देखा जाता है।
विशेषार्थ-छह नोकषायोंका उदय यथासम्भव आठवें गुणस्थान तक ही होता है, अतः . क्षपकके नौवें गुणस्थानमें उदय समयके सिवा उद्यावलिप्रमाण गुणश्रेणिगोपुच्छाओंका आश्रय लेकर यहाँ उत्कृष्ट स्वामित्व कहा है।
* उन्हीं छह नोकपायों के उदयसे झीनस्थितिबाले उत्कृष्ट कर्मपरमाणुओंका स्वामी कौन है ?
६५२६. यह सूत्र सुगम है।
* जो गुणितकांश क्षपक जीव अपूर्वकरणके अन्तिम समयमें विद्यमान है वह छह नोकपायोंके उदयसे झीनस्थितिबाले उत्कृष्ट कर्मपरमाणुओंका स्वामी है ।
६५३०. इस सूत्रमें गुणितकांश पद का निर्देश इससे विपरीत क्षपितकर्माश जीवका निषेध करनेके लिये किया है। तथा क्षपक पदका निर्देश उपशामक जीवका निवारण करनेके लिये किया है।
शंका-ऐसा क्यों किया ?
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