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________________ ३०७ गा० २२ ] पदेसविहत्तीए झीणाझीणचूलियाए सामित्तं * गुणिदकम्मंसियस पुरिसवेदं खवमाणयस्स आवलियचरिमसमयअसंछोहयस्स तस्स उक्कस्सयं तिण्हं पि झीण हिदियं । $ ५२२. एत्थ गुणिदकम्मंसियवयणेण तिण्हं वेदाणं पूरिदकम्मंसियस्स गहणं कायव्वं, अण्णहा पुरिसवेदुक्कस्ससंचयाणुववत्तीदो । सेसं सुगम । @ उक्कस्सयमुदयादो झीणहिदियं चरिमसमयपुरिसवेदयस्स । ६ ५२३. तस्सेव पुरिसवेदोदएण खवगसेढिमारूढस्स अधहिदीए गालिदपढमहिदियस्स चरिमसमयपुरिसवेदयस्स पयदुक्कस्ससामित्तं होइ ति सुत्तत्थो । 8 णवुसयवेदयस्ल उक्कस्सयं तिण्हं पि झीणहिदियं कस्स ? $ ५२४. सुगममेदमासंकासुत्तं । * गुणिदकम्मंसियस पर्बुसयवेदेण उवहिदस्स खवयस्स पवुसयवेदावलियचरिमसमयअसंछोहयस्स तिगिण वि झीणहिदियाणि उक्कस्सयाणि। ५२५. एत्थ गुणिदकम्मंसियस्स पयदुक्स्सझीणद्विदियाणि होति त्ति * जो गुणितकौशवाला जीव पुरुषवेदकी क्षपणा करता हुआ आवलिके चरम समयमें असंक्षोभक है वह अपकर्षण आदि तीनोंकी अपेक्षा झीनस्थितिवाले उत्कृष्ट कर्मपरमाणुओंका स्वामी है। ५२२. इस सत्र में जो गुणितकांश यह वचन आया है सो इससे तीनों वेदोंके गुणितकाशवाले जीवका ग्रहण करना चाहिये । अन्यथा पुरुषवेदका उत्कृष्ट संचय नहीं बन सकता है। शेष कथन सुगम है। * तथा पुरुषवेदका क्षपक जीव अपने अन्तिम समयमें उदयसे झीनस्थितिवाले उत्कृष्ट कर्मपरमाणुओंका स्वामी है । ६५२३. जो पुरुषवेदके उदयसे क्षपकश्रेणिषर चढ़ा है और जिसने अधःस्थितिके द्वारा प्रथम स्थितिको गला दिया है उसके पुरुषवेदके उदयके अन्तिम समयमें प्रकृत उत्कष्ट स्वामित्व होता है यह इस सूत्रका अर्थ है। ____* नपुंसकवेदके अपकर्षण आदि तीनोंकी अपेक्षा झीनस्थितिवाले उत्कृष्ट कर्मपरमाणुओंका स्वामी कौन है ? $ ५२४. यह आशंका सूत्र सरल है। * जो गुणितकाशवाला जीव नपुसकवेदके उदयसै तपकश्रेणि पर आरोहण करके नपुसकवेदका आवलिके चरम समयमें असंक्षोभक है वह अपकर्षण आदि तीनोंकी अपेक्षा झीनस्थितिवाले उत्कृष्ट कर्मपरमाणुओंका स्वामी है। ६५२५. यहाँ गुणितकर्माशवाले जीवके प्रकृत उत्कृष्ट झीनस्थितिवाले कर्मपरमाणु होते हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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