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________________ गा० २२ ] पदेसविहत्तीए झीणाझीणचूलियाए सामित्तं ३०५ * इत्थिवेदस्स उकस्सयमोकडणादिचउराहं पि झीणहिदियं कस्स ? ६.५१७. सुगममेदं सामित्तविसयं पुच्छासुतं । एवं पुच्छिदे तत्थ ताव तिण्हं झीणहिदियाणमेयसामियाणं परूवणहमुत्तरसुत्तं भणइ इत्थिवेदपूरिदकम्मंसियस्स आवलियचरिमसमयअसंछोहयस्स तिगिण वि झीणहिदियाणि उक्कस्सयाणि । $ ५१८. गुणिदकम्मंसियलक्खणेणागंतूण पलिदोवमासंखेज्जभागमेत्तसगपूरणकालभंतरे इत्थिवेदं पूरेमाणाणमप्पविद्वविहाणे कस्स सामित्तं होइ किमविसेसेण पूरिदकम्मसियस्स तं होइ ति आसंकाणिरायरण विसेसणमाह-प्रावलियचरिमसमयअसंछोहयस्स' । चरिमसमय-दुचरिमसमयअसंछोहयादिकमेण हेहदो ओयरिय आवलियचरिमसमयअसंछोहयभावेणावहिद जीवस्से ति वुत्तं होइ। एत्थ समयूणावलियचरिमसमयअसंछोहयस्से त्ति वत्तव्वं, सवेददुचरिमसमए इत्थिवेदचरिमफालीए णिल्लेवाणुवलंभादो त्ति ? ण एस दोसो, अणुप्पायाणुच्छेदमस्सियूण चरिमसमययह है कि संज्वलन लोभके उदयसे झीनस्थितिवाले इतने कर्मपरमाणु अन्यत्र नहीं पाये जाते, अतः सूक्ष्म लोभके अन्तिम समयमें विद्यमान जीव ही संज्वलन लोभके उदयसे झीनस्थितिवाले डत्कृष्ट कर्मपरमाणुओंका स्वामी होता है। * स्त्रीवेदके अपकर्षणादि चारोंकी अपेक्षा झीनस्थितिवाले उत्कृष्ट कर्मपरमाणुओंका स्वामी कौन है ? ६५१७. यह स्वामित्वविषयक पृच्छासत्र सरल है। इस प्रकार पूछने पर उनमें से पहले एकस्वामिक तीन झीनस्थितिवालोंका कथन करने के लिए आगेका सूत्र कहते हैं - ___ * जिसने गुणितकर्माशकी विधिसे स्त्रीवेदको उसके कमपरमाणुओंसे भर दिया है और जो एक आवलिके अन्तिम समयमें उसका अपकर्षण आदि नहीं कर रहा है वह अपकर्षण आदि तीनोंकी अपेक्षा झीनस्थितिबाले उत्कष्ट कर्मपरमाणुओंका स्वामी है। ६५१८. गुणितकांशकी विधिसे श्राकर पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण अपने पूरण कालके भीतर स्त्रीवेदको पूरा करनेवाले जीवोंमें भेद किये बिना यह समझना कठिन है कि स्वामित्व किसको प्राप्त है ? क्या सामान्यसे गुणितकर्मांशवाले सभी जीवोंको यह स्वामित्व प्राप्त है ? इसप्रकार इस आशंकाके निराकरण करनेके लिये 'श्रावलियचरिमसमयअसंछोहयस्स' यह विशेषण कहा है। जो अन्तिम समयमें या उपान्त्य समयमें स्त्रीवेदके अपकर्षण आदिसे रहित है। तथा इसी क्रमसे पीछे जाकर जो एक आवलिके अन्तिम समयमें अपकर्षण आदि भावसे रहित है वह जीव स्वामी होता है यह उक्त कथनका तात्पय है। शंका-यहां 'समयूणवलियचरिमसमयसंछोयस्स' ऐसा कहना चाहिये, क्योंकि सवेदभागके द्विचरम समयमें स्त्रीवेदकी अन्तिम फालिका अभाव नहीं पाया जाता ? समाधान-यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि अनुत्पादानुच्छेदकी अपेक्षा अन्तिम ३९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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