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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ पदेसविहत्ती ५ तस्स सबलहुं खवणाए अब्भुहिदस्स जाधे सव्वसंतकम्ममविवक्खिय थोवणभावमावलियं पविस्समाणयं पविस्समाणयं कमेण पवि ता पयदुक्कस्ससामित्तं होइ । सव्वसंतकम्मवयणेणेदेण विणहासेसदव्यमेदस्स असंखेजदिभागत्तेण अप्पहाणमिदि सूचिदं पविस्समाणयं पविमिदि एदेण अक्कमपवेसो पडिसिदो।
® उकस्सयमुदयादो झीणहिदियं कस्स ? ६५१५. सुगम ।
8 चरिमसमयसकसायखवगस्स।
$ ५१६. एत्थ चरिमसमयसकसाओ जो खवगो सुहुमसांपरायसण्णिदो तस्स पयदुक्कस्ससामित्तं होइ ति संबंधो कायव्यो। कुदो एदमुक्कस्सयं ? मोहणीयसव्वदव्वस्स एत्थेव पुजीभूदस्सुवलंभादो । एत्थ दव्वपमाणाणयणं जाणिय वत्तव्वं ।
इस जीवके अतिशीघ्र क्षपणाके लिये उद्यत होनेपर जब सब सत्कर्म क्रमसे श्रावलिके भीतर प्रविष्ट हो जाता है तब प्रकृत उत्कृष्ट स्वामित्व होता है। यहाँ यद्यपि कुछ ऐसे कर्म बच जाते हैं जो आवलिके भीतर प्रविष्ट नहीं होते, किन्तु यहाँ उनकी विवक्षा नहीं की गई है। इस सूत्र में जो 'सब सत्कर्म' यह वचन दिया है सो इससे यह सूचित किया है कि जो द्रव्य नष्ट हो गया है वह इसका असंख्यातवाँ भागप्रमाण होनेसे अग्रधान है। तथा सत्र में जो 'पविस्समाणयं पविट्ठ' यह वचन दिया है सो इससे अक्रमप्रवेशका निषेध कर दिया है। आशय यह है कि सब सत्कर्म क्रमसे ही आवलिके भीतर प्रविष्ट होता है।
विशेषार्थ—गुणितकाशवाला जीव अतिशीघ्र क्षपणाके लिये उद्यत होकर जब क्रमसे सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थानमें पहुँचकर लोभके सब कर्मपरमाणुओंको आवलिके भीतर प्रवेश करा देता है तब इसके उदयावलिके भीतर प्रविष्ट हुआ द्रव्य सबसे उत्कृष्ट होता है। किन्तु यह अपकर्षण, उत्कर्षण और संक्रमणके अयोग्य होता है। इसीसे इन तीनोंकी अपेक्षा झीनस्थितिवाले उत्कृष्ट कर्मपरमाणुओंका स्वामी इप्से बतलाया है।
* उदयसे झीनस्थितिवाले उत्कृष्ट कर्मपरमाणुओं का स्वामी कौन है । ६५१५. यह सूत्र सरल है।
* जो तपक सकपाय अवस्थाके अन्तिम समयमें स्थित है वह उदयसे झीनस्थितिबाले उत्कृष्ट कर्मपरमाणुओं का स्वामी है ।
६५१६. यहाँ पर जो क्षपक सकषाय अवस्थाके अन्तिम समयमें स्थित है और जिसे सूक्ष्मसांपरायसंयत कहते हैं उसके प्रकृत उत्कृष्ट स्वामित्व होता है ऐसा सम्बन्ध कर लेना चाहिये।
शंका-इसे ही उत्कृष्ट स्वामी क्यों कहा ? । समाधान-क्योंकि यहाँ पर मोहनीय कर्मका सब द्रव्य एकत्रित होकर पाया जाता है । यहाँ पर इस उत्कृष्ट द्रव्यके लानेके क्रमको जानकर उसका कथन करना चाहिये।
विशेषार्थ-सूक्ष्मसाम्पराय संयतके अन्तिम गुणश्रेणिशीर्षका सब द्रव्य इस गुणस्थानके अन्तिम समयमें उदयमें देखा जाता है। इसमें अब तक निर्जीर्ण हुए द्रव्यको छोड़कर शेष सब चारित्रमोहनीयका द्रव्य आ जाता है, इसलिये इसे उत्कृष्ट कहा है। आशय
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