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गा० २२] पदेसविहत्तीए झीणाझीणचूलियाए सामित्तं
२६३ समयूणावलियमेत्ताणमेत्थुवलंभादो। एत्थाणताणुबंधिविसंजोयणगुणसेढी चेव पहाणा, सेसाणमेत्तो असंखेज्जगुणहीणत्तदंसणादो ।
उक्कस्सयमुदयादो झीणहिदियं कस्स ? $ ५०१. सुगमं ।
* संजमासंजम-संजमगुणसेढीओ काऊण तत्थ मिच्छत्तं गदो जाधे गुणसेढिसीसयाणि पढमसमयमिच्छाइहिस्स उदयमागयाणि ताधे तस्स पढमसमयमिच्छाइहिस्स उक्कस्सयमुदयादो झीगहिदियं ।
५०२. एत्थ गुणिदकम्मंसियणिद्देसो किम ण कदो ? ण, तस्स पुब्बिल्लंसामित्तसुत्तादो अणुवुत्तिदंसणादो। गुणसेढीणं परिणामपरतंतभावेण ण तं णिप्फलं, पयडिगोवुच्छाए लाहदसणादो । एत्थ पदसंबंधो संजमासंजम-संजमगुणसेढीओ काऊण तत्थुद्दे से मिच्छत्तं गओ जाधे गयस्स पढपसमयमिच्छाइहिस्स दो वि गुणसेढि
समाधान नहीं, क्योंकि अपने-अपने उत्कृष्ट परिणामोंके द्वारा की गई तीनों ही गुणश्रेणिगोपुच्छाएँ एक समय कम एक आवलिप्रमाण यहाँ पाई जाती हैं, इसलिये अपकर्षणादि की झीनस्थितियोंकी अपेक्षा इसीके उत्कृष्टपना है। तो भी यहाँ अनन्तानन्धीकी विसंयोजनासम्बन्धी गुणश्रेणि ही प्रधान है, क्योंकि शेष दो गुणश्रेणियाँ इससे असंख्यातगुणी हीन देखी जाती हैं।
विशेपार्थ-जो गुणितकाशवाला जीव अतिशीघ्र संयमासंयम, संयम और अनन्तानुबन्धीकी विसंयोजना इन तीनों सम्बन्धी गुणश्रोणियोंको क्रमसे करके तदनन्तर अनन्तानुबन्धीके अन्तिम स्थितिकाण्डकका पतन करके स्थित होता है उसके अनन्तानुबन्धीके अपकर्षण, उत्कर्षण और संक्रमणकी अपेक्षा झीनस्थितिवाले उत्कृष्ट कर्मपरमाणु पाये जाते हैं यह उक्त सूत्रका आशय है।
* उदयसे झीनस्थितिवाले उत्कृष्ट कर्मपरमाणुओंका स्वामी कौन है ? ६५०१. यह सूत्र सुगम है।
*जो संयमासंयम और संयमसम्बन्धी गुणश्रेणियोंको करके मिथ्यात्वमें गया और वहाँ पहुँचने पर मिथ्यादृष्टि गुणस्थानके प्रथम समयमें जब गुणश्रेणिशीर्ष उदयको प्राप्त होते हैं तब वह प्रथम समयवर्ती मिथ्यादृष्टि उदयसे झीनस्थितिवाले उत्कृष्ट कर्मपरमाणुओंका स्वामी होता है।
६५०२. शंका--इस सूत्रमें 'गुणिदकम्मंसिय' पदका निर्देश क्यों नहीं किया ?
समाधान-नहीं, क्योंकि उस पदकी पूर्वके स्वामित्वसूत्रसे अनुवृत्ति देखी जाती है। और गुणश्रेणियाँ परिणामों के अधीन रहती हैं, इसलिये यह निष्फल भी नहीं है, क्योंकि इससे प्रकृतिगोपुच्छाका लाभ दिखाई देता है।
___ अब इस सूत्रके पदोंका इस प्रकार सम्बन्ध करे कि संयमासंयम और संयमसम्बन्धी गुणश्रेणियोंको करके फिर मिथ्यात्वको प्राप्त हुआ और जब मिथ्यात्वमें जाकर प्रथम
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