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गा० २२] पदेसविहत्तीए झीणाझीणचूलियाए सामित्तं
१४८४. संपहि दसणमोहणीयं खतस्स कम्हि उद्देसे सामित्तं होदि ति आसंकिय तदुद्द सपदुप्पायणमाह-अपच्छिमहिदिखंडयं संछुभमाणयं संछुद्धमावलिया समयूणा सेसा इच्चादि । अपुव्वकरणपढमसमयप्पहुडि बहुएसु हिदिखंडयसहस्सैसु पादेकमणुभागखंडयसहस्साविणाभावीसु अंतोमुहुतमेत्तकीरणद्धापडि बढेसु पदिदेसु पुणो अणियट्टि अदाए संखेजे सु भागेसु वोलीणेसु णिप्पच्छिमं हिदिखंडयं पलिदोवमासंखेजभागपमाणायाममावलियवज्ज संछुभमाणयं सम्मामिच्छत्तस्सुवरि गिरवसेसं संछुद्धं । जाधे उदयावलिया समयूणा सेसा ताधे तस्स गुणिदकम्मंसियस्स उक्कस्सयमोकड्डणादो झीणहिदियं मिच्छत्तपदेसगं होदि । कुदो आवलियाए समयूणतं ? उदयाभावेण सम्मत्तस्सुवरि तदुदयगिसेयसमाणमिच्छत्तेयहिदीए थिवुक्कसंकमेण संकंतीदो। कुदो पुण एदस्स आवलियपइपदेसग्गस्स अोकड्डणादो झीणहिदियस्स उक्कस्सत्तं ? ण, पडिसमयमसंखेजगुणाए सेडीए आरिदगुणसेडिगोवुच्छाणं हेडिमासे सतबियप्पेहितो असंखेज्जगुणागमुक्कस्सभावस्स गाइयत्तादो । उक्त कथनका तात्पर्य है।
४८. अब दर्शनमोहनीयकी क्षपणा करते हुए भी किस स्थान पर उत्कृष्ट स्वामित्व होता है ऐसी आशंकाके होने पर उस स्थानका निर्देश करनेके लिये 'अपच्छिमहिदिखंडयं संछुभमाणयं संछुद्धमावलिया समयूणा सेसा' इत्यादि सूत्र कहा है । अपूर्वकरण के प्रथम समयसे लेकर अन्तर्मुहूर्तप्रमाण उत्कीरण कालसे सम्बन्ध रखनेवाले हजारों स्थितिकाण्डकोंका और एक एक स्थितिकाण्डकके प्रति हजारों अनुभागकाण्डकोंका पतन करनेके पश्चात् जब यह जीव अनिवृत्तिकरणमें प्रवेश करके और उसके संख्यात बहुभागोंके व्यतीत होने पर एक आवलिके सिवा पल्यके असंख्यातवें भाग आयामवाले अन्तिम स्थितिकाण्डकका पतन करनेका प्रारम्भ करता है और उसे सबका सब सम्यग्मिथ्यात्वमें निक्षेप करनेके बाद जब एक समयकम एक श्रावलिकाल शेष रहता है तब इस गुणितकमांशवाले जीवके मिथ्यात्वके अपकर्षणसे झीनस्थितिवाले उत्कृष्ट कर्मपरमाणु होते हैं।
शंका-यहाँ आवलिको एक समय कम क्यों बतलाया ?
समाधान-क्योंकि वहाँ मिथ्यात्वका उदय न होनेसे सम्यक्त्वके उदयरूप निषेकके बराबरकी मिथ्यात्वकी एक स्थिति स्तिवुक संक्रमणके द्वारा सम्यक्त्वके द्रव्यमें संक्रान्त हो गई है, इसलिये श्रावलिमें एक समय कम बतलाया है।
शंका-अपकर्षणसे झीनस्थितिवाले ये कर्मपरमाणु आवलिके भीतर प्रविष्ट होनेपर ही उत्कृष्ट क्यों होते हैं ?
समाधान-नहीं, क्योंकि वे कर्मपरमाणु प्रति समय असंख्यातगुणी श्रेणिके द्वारा गुणश्रेणिगोपुच्छाको प्राप्त हैं और नीचेके तत्सम्बन्धी और सब विकल्पोंसे असंख्यातगुणे हैं, इसलिये इन्हें उत्कृष्ट मानना न्याय्य है।
विशेषार्थ-यह तो पहले ही बतला पाये हैं कि जो कर्मपरमाणु उदयावलिके भीतर स्थित हैं वे अपकर्षणसे झीनस्थितिवाले हैं और जो कर्मपरमाणु उदयावलिके बाहर स्थित हैं वे अपकर्षणसे झीन स्थितिवाले हैं। अब इन झीनस्थितिबाले कर्मपरमाणुओंमें मिथ्यात्वकी अपेक्षा उत्कृष्ट विकल्प कहाँ प्राप्त होता है यह बतलाया है। मिथ्यात्वका अन्यत्र उदयावलिमें
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