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________________ २७६ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ पदेसविहत्ती ५ ४८१. एत्तो सामित्त वत्तइस्सामो त्ति अहियारसंभालणसुत्तमेदं । * मिच्छत्तस्स उकस्सयमोकड्डणादो झीणहिदियं कस्स ? $ ४८२. सुगममेदं पुच्छासुत्तं । * गुणिदकम्मंसियस्स सव्वलहु दंसणमोहणीयं खवेंतस्स अपच्छिमहिदिखंडयं संछुभमाणयं संछुद्धमावलिया समयूणा सेसा तस्स उकस्सयमोकडणादो झीणहिदियं । ४८३. एदस्स मुत्तस्स अत्थो वुच्चदे। तं जहा-मिच्छत्तस्स उकस्सयमोकड्डणादो झीणहिदियं कस्से त्ति जादसंदेहस्स सिस्सस्स तव्विसयणिच्छयजणण गुणिदकम्मंसियस्से त्ति वुत्तं, अण्णत्थ पदेसास्स वुक्कस्सभावाणुववत्तीदो। किं सव्वस्सेव गुणिदकम्मंसियस्स ? नेत्याह-सव्वलहुं दंसणमोहणीयं खवेंतस्स । गुणिदकम्मंसियलकवणेणागंतूण सत्तमपुढविणेरइयचरिमसमए ओघुक्कस्समिच्छत्तदव्वं काऊण तत्तो णिप्पिडिय पंचिंदियतिरिक्वेसु एइंदिएसु च दोण्णि तिण्णि भवग्रहणाणि भमिय पुणो मणुस्सेसुप्पजिय अह वस्साणि बोलाविय सचलहुएण कालेण दंसणमोहणीयकम्म खवेदुमाढत्तस्से ति वुत्तं होइ। ६४८१. अब इसके आगे स्वामित्वको बतलाते हैं इस प्रकार यह सूत्र अधिकारकी संम्हाल करता है। * मिथ्यात्वके अपकर्षणसे झीनस्थितिवाले उत्कृष्ट कर्मपरमाणुओंका स्वामी कौन है। ६४८२. यह पृच्छा सूत्र सुगम है। * गुणितकर्माशवाले जिस जीवके सबसे थोड़े कालमें दर्शनमोहनीयकी तपणाका प्रारम्भ करनेके बाद अन्तिम स्थितिकाण्डकका पतन करके एक समय कम एक आवलि काल शेष रहा वह अपकर्षणसे झीनस्थितिवाले उत्कृष्ट कर्मपरमाणुओंका स्वामी है। ६४८३. अब इस सूत्रका अर्थ कहते हैं। वह इस प्रकार है-मिथ्यात्वके अपकर्षणसे झीनस्थितिवाले उत्कृष्ट कर्मपरमाणु किसके होते हैं इस प्रकार शिष्यको सन्देह हो जानेपर ज्यक निश्चयके पैदा करनेके लिये सूत्र में गणिदकम्मंसियस्स' यह पद कहा है, क्योंकि गणित काशवाले जीवके सिवा अन्यत्र अपकर्षणसे झीनस्थितिवाले कर्मपरमाणु उत्कृष्ट नहीं हो सकते । क्या सभी गुणितकाशवाले जीवोंके अपकर्षणसे झीनस्थितिवाले कर्मपरमाणु उत्कृष्ट होते हैं ? नहीं, यही बतलानेके लिये सूत्र में 'सव्वलहुदसणमोहणीयं खर्वतस्स' यह पद कहा है। गुणितकमांशकी जो विधि बतलाई है उस विधिसे आकर और सातवीं पृथिवीका नारकी होकर उसके अन्तिम समयमें मिथ्यात्वके द्रव्यको अोघसे उत्कृष्ट करके फिर वहाँसे निकलकर तथा पंचेन्द्रिय तिथंच और एकेन्द्रियोंमें दो तीन भवतक भ्रमण करके मनुष्योंमें उत्पन्न हुआ और वहाँ आठ वर्ष बिताकर अति थोड़े कालके द्वारा जिसने दर्शनमोहनीयकी क्षपणाका प्रारम्भ किया उस गुणितकांशवाले जीवके अपकर्षणसे झीनस्थितिवाले कर्मपरमाणु उत्कृष्ट होते हैं यह तद्रिष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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