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गा० २२] पदेसविहत्तीए झीणाझीणचूलियाए परूवणा कम्महिदियसमयपबद्ध पडिबद्ध पदेसग्गस्स ओकड्डणाए आबाहाब्भंतरे णिक्खित्तस्स पुणो वि उक्कड्डियूण आबाहादो उवरि णिक्खेवसंभवेण तत्तो झीणहिदियत्ताणुवलंभादो। ण च णिरुद्धहिदीए चेव समवहिदाणमुक्कड्डणा ण संभवदि ति तत्तो झीणहिदियत्तं वोत्तुं जुत्तं, जत्थ वा तत्थ वा द्विदस्स णिरुद्धहिदिपदेसग्गस्स उक्कड्डणासत्तीए अच्चंताभावस्सह विवक्खियत्तादो। एसा सव्वा वि उक्कड्डणादो झीणाझीणहिदियाणमपदपरूवणा ओघेण मूलुत्तरपयडिविसेसविवक्खमकाऊण सामण्णेण परूविदा । एत्तो सव्वासु वि मग्गणासु सगसगजहण्णाबाहाओ अस्सियूण पुध पुध सव्धकम्माणमादेसपरूवणा कायव्वा ।
ॐ एवमुक्कड्डणादो झीणहिदियस्स अपदं समत्तं । * एत्तो संकमणादो झीणहिदियं । ४७५. एत्तो उपरि संकमणादो झीणहिदियं भणिस्सामो त्ति पइज्जामुत्तमेदं । * जं उदयावलियपविड तं, णत्थि अण्णो वियप्पो।
४७६. एत्थ संकमणादो झीणहिदियमिदि अणुवट्टदे। तेण जमुदयावलियं पइ तं संकमणादो झीणहिदियं होदि ति संबंधो कायव्यो । कुदो उदयावलियभंतरे कर्मपरमाणुओंने वहाँ अपनी स्थिति समाप्त कर ली हो उनको अपकर्षण द्वारा आबाधाके भीतर निक्षिप्त कर देने पर उत्कर्षण होकर फिर भी उनका आबाधाके ऊपर निक्षेप सम्भव है, इसलिये उनमें उत्कर्षणसे झीनस्थितिपना नहीं पाया जाता। ___यदि कहा जाय कि विवक्षित स्थितिमें ही अवस्थित रहते हुए इनका उत्कर्षण सम्भव नहीं है, इसलिये इन्हें उत्कर्षणसे झीनस्थितिवाला कहना युक्त है सो भी बात नहीं है, क्योंकि विवक्षित स्थितिके कर्मपरमाणु कहीं भी स्थित रहें किन्तु यहाँ तो उत्कर्षणशक्तिका अत्यन्त अभाव विवक्षित है। उत्कर्षणसे झीनाझीनस्थितिवाले कर्मपरमाणुओंकी यह सबकी सब अर्थपदप्ररूपणा
ओघसे मूल और उत्तर प्रकृतिविशेषकी विवक्षा न करके सामान्यसे यहाँ कही है। आगे सभी मार्गणाओंमें अपनी अपनी जघन्य आबाधाओंकी अपेक्षा पृथक्-पृथक् सब कोकी आदेशप्ररूपणा करनी चाहिये।
* इस प्रकार उत्कर्षणसे झीनस्थितिक प्रदेशाग्रका अर्थपद समाप्त हुआ। * अब इससे आगे संक्रमणसे झीनस्थितिक अधिकारका निर्देश करते हैं ।
$४७५. इससे आगे संक्रमणसे झीनस्थितिक अधिकारको कहेंगे इस प्रकार यह प्रतिज्ञासूत्र है।
* जो कर्मपरमाणु उदयावलिके भीतर स्थित हैं वे संक्रमणसे झीनस्थितिवाले हैं । इसके अतिरिक्त यहाँ दूसरा विकल्प नहीं है ।
$ ४७६. इस सूत्रमें 'संकमणादो झीण ढिदियं' इस पदकी अनुवृत्ति होती है। इससे इस सूत्रका यह अर्थ होता है कि जो कर्म उदयावलिके भीतर स्थित है वह कर्म संक्रमणसे झीन
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