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________________ २७१ गा० २२] पदेसविहत्तीए झीणाझीणचूलियाए परूवणा ४७१. उदयहिदीदो तिसमयूणावलियपरिहीणजहण्णाबाहामेत्तमुवरि चडिय आबाहाचरिमसमयादो तिसमयूणावलियमेत्तमोदरिय एसा द्विदी द्विदा ति वुत्तं होदि । एदिस्से हिदीए केत्तिया वियप्पा होति त्ति सिस्साभिप्पायमासंकिय एत्तियमेत्ता होति त्ति जाणावणहमुत्तरसुत्तमोइण्णं * एदिस्से हिंदीए एत्तिया चेव वियप्पा । णवरि अवत्थुवियप्पा ख्वुत्तरा। ४७२, एदिस्से संपहि णिरुद्धहिदीए एत्तिया चेव वियप्पा होति जेत्तिया अणंतरहेहिमाए । णवरि संतकम्ममस्सियूण अवत्थुवियप्पा रूवुत्तरा होति, तत्तो रूवुत्तरमेत्तमद्धाणमुवरि गंतूणावहाणादो। * एस कमो जाव जहरिणया आषाहा समयुत्तरा त्ति। ४७३. एस अणंतरपरूविदो कमो जाव जहणिया आवाहा समयुत्तरा त्ति अवहिदाणं दुसमयूणावलियमेत्तियाणमुवरिमहिदीणं षि अणणाहिओ जाणेयव्यो, विसेसाभावादो। णवरि आबाहाचरिमसमयादो अणंतरोवरिमाए द्विदीए णवकबंधमस्सियूण अवत्थुवियप्पा ण लभंति । आबाहाए बाहिं तत्कालियस्स वि णवकबंध ७१. उदय स्थितिसे तीन समय कम आवलिसे न्यून जघन्य आबाधाप्रमाण स्थान आगे जाकर और आबाधाके अन्तिम समयसे तीन समय कम एक आवलिप्रमाण स्थान पीछे आकर यह स्थिति स्थित है यह उक्त कथनका तात्पर्य है। इस स्थितिमें कितने विकल्प होते हैं इस प्रकार शिष्यके अभिप्रायानुसार आशंका करके इतने विकल्प होते हैं यह बतलानेके लिये आगेका सूत्र आया है * इस स्थितिमें इतने ही विकल्प होते हैं। किन्तु इतनी विशेषता है कि अवस्तुविकल्प एक अधिक होते हैं। ६४७२. इस समय जो स्थिति विवक्षित है उसमें इतने ही विकल्प होते हैं जितने अनन्तर पूर्ववर्ती स्थितिमें बतला आये हैं। किन्तु सत्कर्मकी अपेक्षा अवस्तुविकल्प एक अधिक होते हैं, क्योंकि पूर्व स्थितिसे एक स्थान आगे जाकर यह स्थिति अवस्थित है। विशेषार्थ—पूर्व स्थितिसे इस स्थितिमें और कोई विशेषता नहीं है, इसलिये इसके और सब विकल्प तो पूर्व स्थितिके ही समान हैं। किन्तु अवस्तुविकल्पोंमें एककी वृद्धि हो जाती है, क्योंकि पर्व स्थितिसे एक स्थान आगे जाकर यह स्थिति स्थित है यह इस सूत्रका भाव है। ___ * एक समय अधिक जघन्य आपाधाप्रमाण स्थितिके प्राप्त होने तक यही क्रम जानना चाहिये। ६४७३. यह जो इससे पहले क्रम कहा है वह एक समय अधिक जघन्य आबाधाके प्राप्त होने तक जो दो समय कम एक आवलिप्रमाण स्थितियाँ अवस्थित हैं उन आगेकी स्थितियोंका भी न्यूनाधिकताके बिना पूर्ववत् जानना चाहिये, क्योंकि उससे इसमें कोई विशेषता नहीं है। किन्तु इतनी विशेषता है कि बाधाके अन्तिम समयसे अनन्तर स्थित आगेकी स्थितिमें नवकबन्धकी अपेक्षा अवस्तुविकल्प नहीं पाये जाते, क्योंकि आबाधाके बाहर जिस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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