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________________ २६७ गा० २२] पदेसविहत्तीए झीणाझीणचूलियाए परूवणा $ ४५८. इमादो पुव्वणिरुद्धहिदीदो समयुत्तरा जा हिदी तिस्से पदेसग्गस्स अवत्थुवियप्पे झीणाझीणहिदियवियप्पे च भणिस्सामो त्ति सुत्तत्थो । ॐ सा पुणे का हिदी। ४५६. सा पुण संपहि णिरुभिजमाणा का हिदी, कइत्थी सा, उदयहिदीदो केत्तियमद्धाणमुवरि चडिय ववहिदा, आबाहा चरिमसमयादो वा केत्तियमेत्तमोइण्णा ति एवमासंकिय सिस्सं णिरारेयं काउमुत्तरमुत्तं भणइ * दुसमयूणाए श्रावलियाए उणिया जा आबाहा एसा सा हिदी । ४६०. जेत्तिया दुसमयूणाए आवलियाए ऊणिया आबाहा एसा सा हिदी, एवडिमा सा हिदी जा संपहि वियप्पपरूवणहमाइटा । उदयहिदीदो दुसयूणावलियपरिहीणाबाहामेत्तमद्धाणमुवरि चडिय आबाहाचरिमसमयादो दुसमयूणावलियमेत्तं हेदृदो वोसरिय पुव्वाणंतरणिरुद्धहिदीए उवरि हिदा एसा हिदि ति वुत्तं होइ । ॐ इदाणिमेदिस्से हिदीए अवत्थुवियप्पा केत्तिया । ४६१. सुगम । 8 जावदिया हेहिल्लियाए हिंदीए अवत्थुवियप्पा तदो स्वुत्तरा । ६४५८. इससे अर्थात् पूर्व विवक्षित स्थितिसे जो एक समय अधिक स्थिति है उस स्थितिके कर्मपरमाणुओंके अवस्तुविकल्प और झीनाझीन स्थितिविकल्प कहेंगे यह इस सूत्रका भाव है। * वह कौनसी स्थिति है ? ६४५६. जो इस समय विवक्षित है वह कौनसी स्थिति है, उसका क्या प्रमाण है, उदयस्थितिसे कितना स्थान आगे जाकर वह स्थित है, या आबाधाके अन्तिम समयसे कितना काल पीछे जाकर वह पाई जाती है इस प्रकारकी शंका करनेवाले शिष्यको निःशंक करनेके लिये आगेका सूत्र कहते हैं * दो समय कम आवलिसे न्यून जो आवाधा है यह वह स्थिति है। ४६०. दो समय कम आवलिसे न्यून आबाधाका जितना प्रमाण हो इतनी वह स्थिति है जो इस समय विकल्पोंका कथन करनेके लिये विवक्षित है। उदय स्थितिसे दो समय कम आवलिसे हीन श्राबाधाप्रमाण स्थान आगे जाकर और आबाधाके अन्तिम समयसे दो समय कम आवलिप्रमाण स्थान पीछे जाकर पूर्वोक्त अनन्तरवर्ती विवक्षित स्थितिके आगे यह स्थिति है यह इस सूत्रका भाव है। * अब इस स्थितिके अवस्तुविकल्प कितने हैं । $ ४६१. यह सूत्र सरल है। * पिछली स्थितिके जितने अवस्तु विकल्प हैं उनसे एक अधिक हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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