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________________ २६६ जयधवलासहिदे कसायपाहुरे [ पदेसविहत्ती ५ एत्थतणी अधिच्छावणा ? आवलियमेत्ती अवहिदा चेयमुवरि सव्वत्थ । केति ओ पुण एत्थ णिक्खेवो ? एओ समओ । सो च अणवहिओ समउत्तरादिकमेण उवरिमवियप्पेसु वट्टमाणो गच्छइ । ६४५६. संपहि पयदहिदीए वियप्पे समाणिय उवरिमासु हिदीसु वियप्पगवेसणं कुणमाणो चुण्णिसुत्तयारो इदमाह समयूणाए श्रावलियाए अणिया मावाहा । एदिस्से हिंदीए वियप्पा समत्ता। ४५७. सुगमं । * एदादो दिदीदो समयुत्तराए हिदीए वियप्पे भणिस्सामो । शंका-यहाँ अतिस्थापनाका प्रमाण कितना है ? समाधान-एक आवली, जो कि आगे सर्वत्र अवस्थित ही जानना चाहिये। शंका- यहाँ निक्षेपका प्रमाण कितना है ? समाधान—एक समय जो कि अनवस्थित है, क्योंकि वह आगेके विकल्पों में एक-एक समय अधिकके क्रमसे बढ़ता जाता है। विशेषार्थ-पहले यह बतलाकर कि एक समय कम आवलिसे न्यून आबाधाप्रमाण कर्मस्थितिमें जिन कर्मपरमाणुओंकी स्थिति एक समय अधिक आबाधाप्रमाण शेष हो उनका उत्कर्षण नहीं हो सकता, क्योंकि यहाँ श्रावलिप्रमाण अतिस्थापनाके रहने पर भी निक्षेपका सर्वथा अभाव है। अब यह बतलाया गया है कि उसी विवक्षित स्थितिमें जिन कर्मपरमाणोंकी स्थिति उक्त स्थितिसे अधिक शेष हो उनका उत्कर्षण हो सकता है। यहाँ सर्वत्र अतिस्थापना तो एक आवलिप्रमाण ही प्राप्त होती है न्यूनाधिक नहीं। पर निक्षेप उत्तरोत्तर बढ़ता जाता है। यदि पूर्वस्थितिसे एक समय अधिक स्थिति शेष हो तो निक्षेप एक समय प्राप्त होता है। यदि दो समय अधिक शेष हो तो निक्षेप दो समय प्राप्त होता है। इस प्रकार आगे आगे शेष रही स्थितिके अनुसार निक्षेप बढ़ता जाता है। ६४५६. अब प्रकृत स्थितिमें विकल्पोंको समाप्त करके आगेकी स्थितियोंमें विकल्पोंका विचार करते हुए चूर्णिसूत्रकार आगेका सूत्र कहते हैं * विवक्षित स्थितिमें एक समय कम आवलिसे न्यून आवाधाप्रमाण अवस्तु विकल्प होते हैं। इस प्रकार इस स्थितिके विकल्प समाप्त हुए। ४५७. यह सूत्र सरल है। विशेषार्थ विवक्षित स्थिति दो समय कम आवलिसे न्यून आवाधाकी अन्तिम स्थिति है, अतः इसमें, जिन कर्मपरमाणुओंकी स्थिति उदय समयसे लेकर एक समय कम श्रावलिसे न्यून आबाधाकाल तक शेष रही है, वे कर्मपरमाणु नहीं पाये जाते। इसीसे इस विवक्षित स्थितिमें एक समय कम आवलिसे न्यून आबाधाप्रमाण अवस्तुविकल्प बतलाये हैं। * अब इस स्थितिसे एक समय अधिक स्थितिके विकल्प कहेंगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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