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________________ जयधवलाहिदे कसायपाहुडे [ पदेसविहत्ती ५ ९४५३. संपहियरुिद्धहिदीए पुव्वमादिद्वहेद्विमहिदीणं च साहारणी एसा परूवणा; तत्थ वि आबाहामेताव से सकम्मडिदियस्स पदेसग्गस्स झीणडिदियत्तुवभादो | संपहि एत्थतण असामण्णवियप्पपरूवणमुत्तरां पबंध - २६४ * बाधाए समयुत्तराए ऊणिया कम्महिदी विदिक्कता जस्स पदेसग्गस्स तं पि एदिस्से द्विदीए पदेसग्गं होज्ज । तं पुण उकडणादो डिदियं । ९४५४. जइ वि एत्थ अइच्छावरणा श्रावलियमेती पुरणा तो विणिक्खेवाभावेण उकडणादो झीण द्विदियत्तमिदि घेत्तव्वं । कुदो लिक्खेवाभावो ? आवलियमेत्तं मोतृण उबरि सत्तिद्विदीए अभावादो । एसो एत्थ विरुद्धद्विदीए संतकम्ममस्तियूण विशेषार्थ - प्रकृत सूत्र में यह बतलाया है कि इस विवक्षित स्थितिमें स्थित किस स्थिति तकके कर्मंपरमाणुओंका उत्कर्षंण नहीं हो सकता। यह तो पहले ही बतला आये हैं कि एक समय कम एक श्रावलिसे न्यून आबाधाप्रमाण स्थिति से लेकर आगे सर्वत्र अतिस्थापना एक आवलि प्राप्त होती है। अब जब इस नियमको सामने रखकर विचार किया जाता है तो यह स्पष्ट हो जाता है कि जिन कर्मपरमाणुओं की एक समय कम एक आवलिसे न्यून आबाधा प्रमाण स्थिति से लेकर बाधाप्रमाण स्थिति शेष है उनका भी उत्कर्षण नहीं हो सकता, क्योंकि इसमें प्रारम्भके विकल्प में एक समयमात्र भी शक्तिस्थिति या अतिस्थापना नहीं पाई जाती । दूसरे विकल्पमें प्रतिस्थापना केवल एक समयमात्र पाई जाती है। तीसरे विकल्पमें दो समय अतिस्थापना पाई जाती है इस प्रकार आगे आगे जाने पर अन्तिम विकल्प में वह अतिस्थापना एक समय कम एक आवलि पाई जाती है । परन्तु पूरी आवलिप्रमाण प्रतिस्थापना किसी भी विकल्प में नहीं पाई जाती, इसलिये इन कर्मपरमाणुओंका उत्कर्षण नहीं हो सकता यह इस सूत्र का भाव है । ४५३. किन्तु इस समय जो स्थिति विवक्षित है और इससे पूर्वकी जो स्थितियाँ विवक्षित रहीं उन दोनोंके प्रति यह प्ररूपणा साधारण है; क्योंकि वहाँ भी जिन कर्मपरमाणुओंकी स्थिति बाधाप्रमाण शेष रही है उनमें भीनस्थितिपना स्वीकार किया गया है। अब इस स्थितिसम्बन्धी साधारण विकल्पका कथन करनेके लिये आगेकी रचना है * जिन कर्मपरमाणुओं की व्यतीत हुई है वे कर्मपरमाणु भी वाले हैं । एक समय अधिक आवाधासे न्यून कर्मस्थिति इस स्थितिमें हैं पर वे उत्कर्षणसे झीन, स्थिति ९४५४. यद्यपि यहाँ एक अवलिप्रमाण अतिस्थापना पूरी हो गई है तो भी निक्षेपका अभाव होनेसे वे कर्मपरमाणु उत्कर्षण से झीनस्थितिवाले हैं यह यहाँ ग्रहण करना चाहिये । शंका - निक्षेपका प्रभाव क्यों है ? समाधान — क्योंकि इन कर्मपरमाणुओंकी एक आवलिके सिवा और अधिक शक्ति स्थिति नहीं पाई जाती, इसलिये निक्षेपका अभाव है । इस विवक्षित स्थितिमें सत्कर्मकी अपेक्षासे जो यह विकल्प विशेष कहा है सो यह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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