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________________ २६२ जयधवलासहिदे कसायपाहुडै [पदेसवित्ती ५ पुच्छामुत्सस्स भावत्यो । संपहि एदिस्से पुच्छाए उत्तरमाह - जस्स पदेसग्गस समयाहियाए प्रावलियाए ऊणिया कम्महिदी विदिक्कंता तं पि पदेसग्गमेदिस्से हिदीए पत्थि । ४४६. एदिस्से णिरुद्धाए हिदीए तं पदेसग्गं गस्थि जस्स समयाहियाए आवलियाए ऊणिया कम्महिदी विदिक्कता। कुदो ? एत्तो दूरयरं हेहदो ओसरिय तस्स अबढाणादो । तत्तो पुण हेटिमा आवलियमेत्ता अवत्थुवियप्पा अणुत्तसिद्धा त्ति ण परूविदा । ., जस्स पदेसग्गरस दुसमयाहियाए प्रावलियाए ऊणिया कम्महिदी विदिक्कंता तं पि पत्थि । $ ४५०. एत्य एदिस्से हिदीए इदि अणुवट्टदे । सेसं सुगम । जानते इस प्रकार यह इस पृच्छासूत्रका भावार्थ है । अब इस पृच्छाका उत्तर कहते हैं-- * जिन कर्म परमाणुओंकी एक समय अधिक प्रावलिसे न्यून कर्मस्थिति व्यतीत हो गई है वे कर्मपरमाणु भी इस स्थितिमें नहीं हैं । ४४६. इस विवक्षित स्थितिमें वे कर्म परमाणु नहीं हैं जिनकी एक समय अधिक एक आवलिसे न्यून कर्मस्थिति व्यतीत हो गई है; क्योंकि वे कर्मपरमाणु इस विवक्षित स्थितिसे बहुत दूर पीछे जाकर अवस्थित हैं। तथा इन कर्मपरमाणुओंसे पूर्वकी एक आवलिप्रमाण स्थितिमें स्थित कर्मपरमाणु भी इस विवक्षित स्थितिमें नहीं हैं यह वात अनुक्तसिद्ध है, इसलिये इसका यहाँ कथन नहीं किया। विशेषाथ-आबाधाकालमें से एक समय कम एक आवलिके घटा देने पर जो अन्तकी स्थिति प्राप्त हो वह यहाँ विवक्षित स्थिति है। अब यह विचार करना है कि इस स्थितिमें किन स्थितियोंके कर्मपरमाणु हैं और किनके नहीं। एक समय अधिक उदयावलिकी अन्तिम स्थितिसे यह विवक्षित स्थिति बहुत काल आगे जाकर प्राप्त होती है, इसलिये इस विवक्षित स्थितिमें एक समय अधिक उदयावलिकी अन्तिम स्थितिके कर्मपरमाणु नहीं पाये जा सकते यह इस सूत्रका तात्पर्य है। किन्तु इस विवक्षित स्थितिमें एक समय अधिक उदयावलिकी अन्तिम स्थितिसे पूर्वकी एक श्रावलिप्रमाण स्थितियोंके कर्मपरमाणु भी तो नहीं पाये जाते फिर यहाँ उनका निषेध क्यों नहीं किया, यह एक प्रश्न है जिसका समाधान किया जाना आवश्यक है । अतएव इसी प्रश्नका समाधान करनेके लिये टीकामें यह बतलाया है कि जब अगली स्थितिके कर्मपरमाणुओंका विवक्षित स्थितिमें निषेध पर दिया तब इससे पिछली स्थितियोंके कर्मपरमाणुअोंका विवक्षित स्थितिमें निषेध बिना कहे ही हो जाता है, इसलिये उनके निषेधका यहाँ अलगसे उल्लेख नहीं किया। * जिन कर्मपरमाणुओंकी दो समय अधिक एक श्रावलिसे न्यून कर्मस्थिति व्यतीत हो गई है वे कर्मपरमाणु भी इप्त विवक्षित स्थितिय नहीं हैं । $ ४५०. इस सूत्रमें 'एदिस्से हिदीए' इस पदकी अनुवृत्ति होती है । शेष अर्थ सुगम है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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