________________
ना० २२ |
पदेस वित्तीए झीणाझी चूलियाए परूवरणा
२५१
* समयाहियाए उदयावलियाए तिस्से चेव हिदीए पदेसग्गस्स एगो सम पबद्धस्स अच्छिदो त्ति अवत्थु, दो समया पद्धस्स इच्छिदा ति अवत्थु, तिरिण समया पबद्धस्स अइच्छिवा त्ति अवत्थु एवं शिरंतरं गंतू अवलिया पबद्धस्स अहच्छिदा त्ति अवत्थु |
$ ४३९ जा पुव्वमाइट्ठा समयाहियाए उदयावलियाए चरिमहिदी तिस्से चैव हिदीए पदेसग्गस्स पबद्धस्स पारद्धबंधस्स बंधसमय पहुडि एत्रो समओ अइच्छिदां ति अइक्कतो चि अवत्थु । तं पदसम्गमेदिस्से द्विदीए णत्थि । कुदो याबाहामेत्तमुवरि गंतून तस्सावद्वाणादो | एवं सव्वत्थ वत्तव्वं । अहवा जा समयाहियाए उदयावलियाए हिंदी एदिस्से हिदीए जं पदेसग्गं तमादिडमिदि पुव्वं परुविदं । तिस्से च sate उदयदीदो द्विमासेससमयपबद्धाणं पदेसग्गमत्थि आहो णत्थि संतं वा किमुक्कड्डणदो झीणहिदिगमझीणद्विदिगं वा उक्कड्डिज्जमाणं वा केचियमद्धाणमुकड्डिज्ज का वा एदस्स अधिच्छावणा णिक्खेवो वा त्तिण एसो विसेसो सम्ममहारिओ तदो तप्परूवणहमेदेसिं सुत्ताणमवयारो ति वक्खाणेयव्वं ।
* एक समय अधिक उदयावलिकी जो अन्तिम स्थिति है उसमें वे कर्मपरमाणु नहीं हैं जिन्हें बांधनेके बाद एक समय व्यतीत हुआ है, वे कर्मपरमाणु भी नहीं हैं जिन्हें बांधनेके बाद दो समय व्यतीत हुए हैं, वे कर्म परमाणु भी नहीं हैं जिन्हें बांधने के बाद तीन समय व्यतीत हुए हैं। इस प्रकार निरन्तर जाकर ए से कर्मपरमाणु भी नहीं हैं जिन्हें बांधनेके बाद एक आवलि व्यतीत हुई है ।
६ ४३६. जिन कर्म परमाणुओं का बन्धके बाद अर्थात् बन्धसमय से लेकर एक समय व्यतीत हुआ है वे कर्मपरमाणु पूर्व में जो एक समय अधिक उदयावलिकी अन्तिम स्थिति कह ये हैं उसमें अवस्तु हैं । अर्थात् वे कर्मपरमाणु इस स्थितिमें नहीं पाये जाते, क्योंकि श्रावाधा के बाद उनका सद्भाव पाया जाता है । इसी प्रकार सर्वत्र कथन करना चाहिये । अथवा यहाँ यह व्याख्यान करना चाहिये कि एक समय अधिक उदद्यावलिकी जो अन्तिम स्थिति है और इसके जो कर्म परमाणु हैं वे यहां विवक्षित हैं ऐसा जो पहले कहा है सो उस स्थिति में उदय स्थिति से नीचे अर्थात् पूर्वके सब समयप्रबद्धोंके कर्मपरमाण हैं या नहीं हैं । यदि हैं तो वे क्या उत्कर्षणसे स्थितिवाले हैं या अमीन स्थितिवाले हैं। यदि उत्कर्षण होता है तो कितना उत्कर्षंण होता है। तथा इनका प्रतिस्थापना और निक्षेप कितना है । इस प्रकार यह सब विशेषता भले प्रकार से ज्ञात नहीं हुई, इसलिये इस विशेषताका कथन करनेके लिये इन सूत्रोंका अवतार हुआ है ऐसा यहाँ व्याख्यान करना चाहिए ।
विशेषार्थ — प्रकृत सूत्र में यह बतलाया है कि एक समय अधिक उदयावलिकी अन्तिम स्थितिमें किन समयप्रबद्धोंके कर्म परमाणु नहीं पाये जाते । ऐसा नियम है कि बंधे हुए कर्म अपने बन्धकाल से लेकर एक अवलिप्रमाण कालतक तदवस्थ रहते हैं। एक यह भी नियम है कि बंधनेवाले कर्मकी अपने बाधाकालमें निषेक रचना नहीं पाई जाती । इन दो नियमोंको ध्यान में रख कर यदि विचार किया जाता है तो इससे यह स्पष्ट ज्ञात हो जाता है कि वर्तमान कालसे एक
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org