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गा० २२] पदेसविहत्तीए झीणझीणचूलियाए परूवणा
२४६ सुत्तत्तवियप्पाणं देसामासयभावेण वा एदेसि संगहो कायव्यो । विकल्प ग्रहण करने चाहिए या सूत्रोक्त विकल्प देशामर्षक होनेसे इन विकल्पोंका संग्रह करना चाहिए।
विशेषार्थ—पहले यह बतलाया जा चुका है कि एक समय अधिक उदयावलिके अन्तिम समयमें स्थित कौनसे कर्मपरमाणु उत्कर्षणके अयोग्य हैं। अब पिछले दो सूत्रोंमें यह बतलाया गया है कि कौनसे कर्मपरमाणु उत्कषणके योग्य हैं। इसका खुलासा करते हुए जो बतलाया गया है उसका भाव यह है कि उस एक समय अधिक उदयावलिके अन्तिम समयमें स्थित जिन कर्मपरमाणुओंसम्बन्धी समयप्रबद्धोंकी स्थिति यदि आबाधासे एक समय आदि के क्रम से अधिक शेष रहती है तो उन कर्मपरमाणुओंका उत्कर्षण हो सकता है और ऐसा होते हुए जितनी आबाधा होती है उतना अतिस्थापनाका प्रमाण होता है तथा आबाधासे जितनी अधिक स्थिति होती है उतना निक्षेप का प्रमाण होता है । यदि अबाधासे एक समय अधिक होती है तो निक्षेपका प्रमाण एक समय होता है। यदि दो समय अधिक होती है तो निक्षेपका प्रमाण दो समय होता है । इसी प्रकार तीन समय, चार समय, संख्यात समय, असंख्यात समय, एक दिन, एक मास, एक वर्ष, वर्षपृथक्त्व, एक सागर, सागर पृथक्त्व, दस सागर पृथक्त्व, सो सागर पृथक्त्व, हजार सागर पृथक्त्व, लाख सागर पृथक्त्व, कराड़ सागर पृथक्त्व, अन्तः कोड़ाकोड़ी सागर, कोड़ाकोड़ीसागर पृथक्त्वरूप जितनी स्थिति शेष रहती है उतना निक्षेपका प्रसारण होता है। इस प्रकार यदि उत्कृष्ट निक्षेपका प्रमाण प्राप्त किया जाता है तो वह उत्कृष्ट आबाधा और एक समय अधिक एक आवलिसे न्यून सत्तर कोड़ाकोड़ी सागर प्रमाए है। यह उत्कृष्ट निक्षेप एक समय अधिक बन्धाबलिको गलाकर उदयावलिकी उपरितन स्थितिमें स्थित कर्म परमाणुओंका उत्कर्षण करने पर प्राप्त होता है। परन्तु उस उदयावलिकी उपरितन स्थितिमें अनेक समयप्रबद्धोंके परमाणु होते हैं, इसलिये किन परमाणुओंका उत्कर्षण करने पर यह उत्कृष्ट निक्षेप प्राप्त होता है इसका खुलासा करते हैं
किसी एक संज्ञी पंचेन्द्रिय मिथ्यादृष्टि जीवने मोहनीय कर्मका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध किया। फिर बन्धावलिको गलाकर उसने आबाधाके बाहर स्थितिमें स्थित कर्मपरमाणुओंका अपकर्षण करके उदयावलिके बाहर निक्षेप किया । यहाँ उदयावलिके बाहर द्वितीय समयवर्ती स्थितिमें अपकर्षण करके निक्षिप्त किया गया द्रव्य विवक्षित है, क्योंकि उदयावलिके बाहर प्रथम समयमें निक्षिप्त द्रव्यका तदनन्तर समय में उद्यावलिके भीतर प्रवेश हो जाता है, इसलिये उसका उत्कर्षण नहीं हो सकता । अनन्तर दूसरे समयमें उत्कृष्ट संक्लेशके वशसे उत्कृष्ट स्थितिको बांधता हुआ विवक्षित कर्मपरमाणुओंका उत्कर्षण करके उन्हें वह आबाधाके बाहर प्रथम निषेकस्थितिसे लेकर सब निषेक स्थितियोंमें निक्षेप करता है। केवल एक समय अधिक एक आवलिप्रमाण अन्तिम स्थितियों में निक्षेप नहीं करता, क्योंकि उनमें निक्षेप करने योग्य उन कर्म परमाणुओंकी शक्तिस्थिति नहीं पाई जाती । यहाँ उत्कृष्ट आबाधाके भीतर निक्षेप नहीं है और अन्तकी एक समय अधिक एक श्रावलिप्रमाण स्थितियोंमें निक्षेप नहीं है, इसलिये उत्कृष्ट स्थितिमेंसे इतना कम कर देने पर निक्षेपका प्रमाण उत्कृष्ट आबाधा और एक समय अधिक एक आवलिसे न्यून उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण प्राप्त होता है।
अब यहाँ प्रकरणसे उत्कर्षणका काल, अतिस्थापना, निक्षेप और शक्तिस्थिति इन चार बातोंका भी खुलासा किया जाता है, क्योंकि इनको जाने बिना उत्कर्षणका ठीक तरहसे ज्ञान नहीं हो सकता।
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