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________________ INimravarsawWww.ru गा० २२] पदेसविहत्तीए झीणाझीणचूलियाए परूवणा २४७ ४३५. संपहि अज्झीणहिदियस्स उक्कड्डणापाओग्गस्स तस्सेव णिरुद्धहिदिपदेसग्गस्स परूवणहमुत्तरसुत्तमागयं * समयुत्तराए उदयावलियाए तिस्से हिदीए जं पदेसग्ग: तस्स पदेसग्गस्स जइ जहणियाए भावाहाए समयुत्तराए ऊणिया कम्महिदी विदिक्कंता तं पदेसग्गं सका आवाधामेत्तमुक्कड्डिउमेकिस्से हिदीए पिसिंचिदु। ४३६. गयत्थमेदं, सुगमासेसावयवत्तादो। णवरि आवाधामेत्तमुक्कड्डिउमिदि एत्य उक्कड्डियूण ति घेत्तव्यं । अहवा, आबाहामेत्तमुक्कड्डिदुमेक्किस्से हिदीए णिसिंचिदं चेदि संबंधो कायव्वो। च सण विणा वि समुच्चयहावगमादो। एदस्स मुत्तस्स भावत्थो-पुव्वमादिहिदीए पदेसग्गस बंधसमयादो पहुडि जइ जहण्णाबाहाए समयाहियाए ऊणिया कम्महिदी वदिक्कंता होज्ज तो तं पदेसग्गं जहण्णाबाहामेत्तमुक्कड्डिय उवरिमाणंतराए एक्किस्से हिदीए णिसिंचिदु सक्क, तप्पाओग्गजहण्णाण स्थित कर्म परमाणु बतलाये हैं सो उनका उत्कर्षण कब तक नहीं हो सकता यह इस सूत्रमें बतलाया है। यदि तीन समय अधिक उदयावलिप्रमाण स्थिति शेष हो और बाकीकी स्थिति गल गई हो तो भी एक समय अधिक उदयावलिके अन्तिम समयवर्ती उन कर्म परमाणुओंका शेष दो स्थिति में उत्कर्षण नहीं होता, क्योंकि प्रकृतमें अतिस्थापनाका प्रमाण जो जघन्य आबाधा बतलाया है वह अभी पूरा नहीं हुआ है और निक्षेपका अभाव तो बना हुआ ही है। इसी प्रकार चार समय अधिक, पांच समय अधिक उदयावलिप्रमाण स्थितिसे लेकर बाधाकाल प्रमाण स्थितिके शेष रहने पर भी उक्त कर्म परमाणुओंका उत्कर्षण नहीं होता, क्योंकि यहां अन्तिम विकल्पके सिवा और सब विकल्पोंमें अतिस्थापना तो पूरी हुई नहीं और निक्षेपका अभाव तो सर्वत्र ही बना हुआ है। ६४३५. अब उसी स्थितिके जो कर्म परमाणु उत्कर्षणसे अमीन स्थितिवाले अर्थात् उत्कर्षणके योग्य हैं उनका कथन करनेके लिये श्रागेका सूत्र आया है * एक समय अधिक उदयावलिप्रमाण उसी स्थितिके ऐसे कम परमाण लो जिनकी यदि एक समय अधिक जघन्य अबाधासे न्यून शेष कर्मस्थिति गली है तो उन कर्म परमाणुओंका जघन्य आबाधाप्रमाण उत्कर्षण और आवाधासे ऊपर की एक स्थितिमें निक्षेप ये दोनों बातें शक्य हैं । ६४३६ इस सत्रका अर्थ अवगतप्राय है, क्योंकि इसके सब अवयवोंका अर्थ सुगम है। किन्तु इतनी विशेषता है कि 'आबाधामेत्तमुक्कडिउँ' इस वाक्यमें स्थित 'उक्कडिङ' का अर्थ "उत्कर्षण करके' करना चाहिये । अथवा 'आबाधाप्रमाण उत्कर्षण करनेके लिये और एक स्थिति में निक्षेप करनेके लिये शक्य है' ऐसा सम्बन्ध कर लेना चाहिये, क्योंकि यद्यपि वाक्य में 'च' पद नहीं दिया है तो भी समुच्चयरूप अर्थका ज्ञान हो जाता है । इस सूत्र का यह भावार्थ है कि पहले उदाहरणरूपसे निर्दिष्ट की गई स्थितिके कर्मपरमाणुओंकी यदि बेन्ध समयसे लेकर एक समय अधिक जघन्य आबाधासे न्यून शेष कर्मस्थिति व्यतीत हो गई हो तो उन कर्मपरमाणुओं का जघन्य श्राबाधाप्रमाण उत्कर्षण होकर उसके ऊपर अनन्तर समयवर्ती एक स्थितिमें निक्षेप Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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