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गा० २२) पदेसविहत्तीए झीणाझीणचूलियाए परूवणा
२४३ सुगमत्तादो च सिद्धसरूवेण परूविय संपहि उदयावलियबाहिरे वि उकड्डणाए अप्पाओग्गपदेसस्स णिदरिसणं परूवेमाणो तदत्थित्ते पइज्जं करेदि
* उदयावलियबाहिरे वि अत्थि पदेसग्गमुक्कडणादो झीणहिदियं । तस्स णिवरिसणं । तं जहा ।
$ ४२८. एदं पुच्छासुत्तं णिदंसणविसयं सुगमं । एवं पुच्छिदे णिरुद्धहिदिपरूवणहमुत्तरमुत्तं भणइ
___® जा समयाहियाए उदयावलियाए हिंदी एदिस्से हिदीए जं पदेसग्गं तमादि।
४२६. एत्थ समयाहियाए उदयावलियाए चरिमसमए हिदा जा हिदी णाणासमयपबद्धप्पिया एदिस्से हिदीए जं पदेसग्गं तमादि विवक्खियमिदि सुत्तत्थसंबंधो कायव्यो। होनेकी योग्यताका अत्यन्त अभाव है।
इसप्रकार यह कथन अल्प होनेसे या सुगम होनेसे इसका सिद्ध रूप पहले बतलाकर अब उदयावलिके बाहर भी उत्कर्षणके अयोग्य कर्मपरमाणुओंको उदाहरण द्वारा दिखलाते हुए पहले उनके अस्तित्वकी प्रतिज्ञा करते हैं
* उदयावलिके बाहर भी उत्कर्षणसे झीनस्थितिवाले कर्मपरमाणु हैं । उनका उदाहरण । जैसे
४२८. यह उदाहरणविषयक पृच्छासूत्र है, जो सुगम है। ऐसा पूछनेपर उससे निरुद्ध स्थितिका कथन करनेके लिये आगेका सूत्र कहते हैं
* एक समय अधिक उदयावलिके अन्तमें जो स्थिति स्थित है उस स्थितिके जो कर्मपरमाणु हैं वे यहाँ उदाहरणरूपसे विवक्षित हैं ।
४२६. एक समय अधिक उदयावलिके अन्तिम समयमें नाना समयप्रबद्धोंसे सम्बन्ध रखनेवाली जो स्थिति स्थित है और उस स्थितिमें स्थित जो कर्मपरमाणु हैं वे यहाँ आदिष्ट अर्थात् विवक्षित हैं ऐसा इस सूत्रके अर्थका सम्बन्ध करना चाहिए।
विशेषार्थ-जिन कर्मपरमाणुओंकी स्थिति कम है उनकी तत्काल बँधनवाले कर्मके सम्बन्ध से स्थितिका बढ़ाना उत्कर्षण है। यह उत्कर्षण उदयावलिके भीतर स्थित कर्मपरमाणुओंका तो होता ही नहीं, क्योंकि उदयावलिके भीतर स्थित कर्मपरमाणुओंके स्वमुख या परमुखसे होनेवाले उदयको छोड़कर अन्य कोई अवस्था नहीं होती ऐसा नियम है। इसके साथ उदयावलिके बाहर जो कर्मपरमाणु स्थित हैं उनमें भी बहुतोंका उत्कर्षण नहीं हो सकता। प्रकृतमें यही बतलाना है कि वे कौनसे कर्मपरमाणु हैं जिनका उत्कर्षण नहीं हो सकता। इसके लिए सर्वप्रथम उदयावलिके बाहर प्रथम स्थितिमें स्थित कर्मपरमाणु यहाँ उदाहरणरूपसे लिये गये हैं। उदयावलिके बाहर प्रथम स्थितिमें स्थित उन सब कर्मपरमाणुओंमें यह विवेक करना है कि उनमें ऐसे कौनसे कमपरमाणु हैं जिनका उत्कर्षण नहीं हो सकता, क्योंकि वे कर्मपरमाणु नाना समयप्रबद्धसम्बन्धी हैं। इसलिए उनमेंसे कुछ कर्मपरमाणुओंका उत्कर्षण हो सकता है और कुछका नहीं।
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