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________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ ६४३०. एत्थतणपदेसग्गं कम्महिदियभंतरे संचिदाणेगसमयपबद्धपडिबद्धमत्थि कि तं सव्वमेव उक्कडडणाए अप्पाओग्गमाहो अत्थि को इ विसेसो ति आसंकाणिरायरणहमुत्तरमुत्तमोयरइ * तस्स पदेसग्गस्स जइ समयाहियाए आवलियाए ऊणिया कम्महिंदी विदिक्कता बद्धस्स तं कम्म ण सका उक्कड्डिहूँ। ४३१. तस्स णिरुद्धहिदीए पदेसग्गस्स जइ समयाहियाए आवलियाए ऊणिया कम्महिदी विदिक्कता बद्धस्स बंधसमयादो पहुडि तं कम्म णो सक्का उक्कड्डिएं, सत्तिहिदीए तत्तो उवरि एगसमयमेत्तस्स वि अभावांदो। ण च उदयसमए हिदो जीवो उदयावलियबाहिराणंतरहिदिपदेसग्गमुचरिदतेत्तियमेत्तकम्मद्विदियमुक्कड्डिदुं समत्थो, उक्कड्डणापाप्रोग्गभावस्स कम्महिदिपरिहाणीए विणहत्तादो। तदो एदमुक्कड्डणादो झीणहिदियमिदि एसो मुत्तस्स भावत्थो । ६४३०. इस पूर्वोक्त स्थितिके कर्मपरमाणु कर्मस्थितिके भीतर सञ्चित हुए छानेक समयप्रबद्धसम्बन्धी हैं सो क्या वे सबके सब उत्कर्षणके अयोग्य हैं या इनमें कोई विशेषता है ? इस प्रकार इस आशंकाके निराकरण करनेके लिए आगेका सूत्र आया है * किन्तु उन कर्म परमाणुओंकी बन्ध समयसे लेकर यदि एक समय अधिक एक आवलिसे न्यून सव कर्मस्थिति व्यतीत हो गई है तो उन कर्मपरमाणुओंका उत्कर्षण नहीं हो सकता। ६४३१. पहले उदाहरणरूपसे जिस स्थितिका निर्देश किया है उसके उन कर्मपरमाणुओंकी बद्धस्स अर्थात् बन्धके समयसे लेकर यदि एक समय अधिक एक आवलिसे न्यून शेष सब कर्मस्थिति व्यतीत हो गई है तो उन कर्म परमाणुओंका उत्कर्षण नहीं हो सकता, क्योंकि उनकी उस स्थितिसे अधिक एक समयमात्र भी शक्तिस्थिति नहीं पाई जाती। और उदय समयमें स्थित हुआ जीव उदयावलिके बाहर अनन्तर समयवर्ती स्थितिके ऐसे कर्म परमाणुओंका, जिनकी कर्मस्थिति उतनी ही अर्थात् एक समय अधिक उदयावलि प्रमाण ही शेष रही है, उत्कर्षण करनेमें समर्थ नहीं हो सकता, क्योंकि कर्मस्थितिकी हानि हो जानेसे उन कर्म परमाणुओंके उत्कर्षणकी योग्यता ही नष्ट हो गई है. इसलिये ये कर्मपरमाणु उत्कर्षणसे झीन स्थितिवाले हैं यह इस सूत्रका भावार्थ है। विशेषार्थ—यह तो पहले ही बतला आये हैं कि उत्कर्षण सब कर्म परमाणुओंका न होकर कुछका होता है और कुछका नहीं होता। जिनका नहीं होता उनका संक्षेपमें व्योरा इस प्रकार है १-उदयावलिके भीतर स्थित कर्म परमाणुओंका उकर्षण नहीं होता । २-उदयावलिके बाहर भी सत्तामें स्थित जिन कर्मपरमाणुओंकी कर्मस्थिति उत्कर्षणके समय बँधनेवाले कर्मों की आबाधाके बराबर या इससे कम शेष रही है उनका भी उत्कर्षण नहीं होता। ३ निर्व्याघात दशामें उत्कर्षणको प्राप्त होनेवाले कर्म परमाणुओंकी अतिस्थापना कमसे For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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