SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 260
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गा० २२] उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए वड्डीए अप्पाबहुअं २३३ भागहाणि० असंखे गुणा। असंखे०भागवडि० संखे०गुणा । तिण्हं संजलणाणं सव्वत्थोवा संखे० गुणवडि० । असंखे० गुणहाणि० तत्तिया चेव । अवहि० असंखे०गुणा । असंखे० भागहाणि० असंखे० गुणा । असंखे०भागवडि० संखे० गुणा । लोभसंजल. सव्वत्थोवा संखे०गुणवडि० । अवहि० असंखे०गुणा । असंखे०भागहाणि. असंखे०गुणा । असंखे०भागवड्डि. संखे गुणा । इत्थि. सव्वत्थोवा असंखेगुणहाणिः । असंखे० भागवडि० असंखेज्जगुणा । असंखे०भागहाणि संखे गुणा । एवं णवूस० । णवरि वडि-हाणीणं विवज्जासो कायव्वो। पुरिसवेद० सव्वत्थोवा संखे०गुणवडि० । असंखे०गुणहाणि. तत्तिया चेव । अवहि० संखे गुणा। असंखे०भागवडि. असंखे०गुणा । असंखे०भागहाणि० संखे०गुणा। चदुणोकसाय० ओघं । भय-दुगुंछा० सव्वत्थोवा अवहि० । असंखे०भागहाणि. असंखे०गुणा । असंखे०भागवडि० संखेजगुणा। एवं मणुसपज्जता० । णवरि जम्हि असंखे०गुणं तम्हि संखे०गुणं कायव्वं । इत्थि० हस्सभंगो। एवं चेव मणुसिणीसु । णवरि पुरिस - णqस० असंखे०गुणहाणि. णत्थि । मणुसअपज्ज. पंचिंदियतिरिक्खअपज्जत्तभंगो। ६४१६. अणुद्दिसादि जाव अवराइद त्ति मिच्छत्त-सम्मत्त०-सम्मामि०-इत्थि० उनसे अवस्थितविभक्तिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे असंख्यात भागहानियाले जीव असंख्यातगुणे हैं । उनसे असंख्यातभागवृद्धिवाले जीव संख्यातगुणे हैं। तीनों संज्वलनोंकी संख्यातगुणवृद्धिवाले जीव सबसे स्तोक हैं। असंख्यातगुणहानिवाले जीव उतने ही हैं । उनसे अवस्थितविभक्तिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे असंख्यातभागहानिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे असंख्यातभागवृद्धिवाले जीव संख्यातगुणे हैं। लोभसंज्वलनकी संख्यातगुणवृद्धिवाले जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे अवस्थितविभक्तिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे असंख्यातभागहानिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे असंख्यातभागवृद्धिवाले जीव संख्यातगुणे हैं। स्त्रीवेदकी असंख्यातगुणहानिवाले जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे असंख्यातभागवृद्धिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे असंख्यातभागहानिवाले जीव संख्यातगुणे हैं। इसीप्रकार नपुंसकवेदकी अपेक्षा अल्पबहुत्व है। इतनी विशेषता है कि वृद्धि और हानिका विपर्यास करना चाहिए । पुरुषवेदकी संख्यातगुणवृद्धिवाले जीव सबसे स्तोक हैं। असंख्यातगुणहानिवाले जीव उतने ही हैं। उनसे अवस्थितविभक्तिवाले जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे असंख्यातभागवृद्धिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे असंख्यातभागहानिवाले जीव संख्यातगुणे हैं। चार नोकषायोंका भङ्ग ओघके समान है । भय और जुगुप्साकी अवस्थितविभक्तिवाले जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे असंख्यातभागहानिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे असंख्यातभागवृद्धिवाले जीव संख्यातगुणे हैं। इसीप्रकार मनुष्य पर्याप्तकोंमें अल्पबहुत्व है। इतनी विशेषता है कि जहाँ असंख्यातगुणा है वहाँ संख्यातगुणा करना चाहिए। मात्र स्त्रीवेदका भङ्ग हास्यके समान है। इसीप्रकार मनुष्यिनियोंमें अल्पबहुत्व है। इतनी विशेषता है कि पुरुषवेद और नपुंसकवेदकी असंख्यातगुणहानि नहीं है। मनुष्य अपर्याप्तकोंमें पञ्चेन्द्रिय तियञ्च अपर्याप्तकोंके समान भङ्ग है। $ ४१६. अनुदिशसे लेकर अपराजित विमान तकके देवोंमें मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, ३० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy