________________
२३१
गा० २२] उत्तरपयडिसपदेविहत्तीए वड्डीए अप्पाबहुअं असंखे०गुणा । असंखे० भागवडि० संखे०गुणा ।
४१३. आदेसेण णेरइय० मिच्छत्त-बारसक०-पुरिस०-भय-दुगुंछा० सव्वत्थोवा अवहि० । असंखे०भागहाणि० असंखे०गुणा । असंखे०भागवडि० संखे०गुणा। णवरि पुरिस० वडि-हाणीणं विवज्जासो कायव्यो । सम्मत्त-सम्मामि० सव्वत्थोवा असंखे० गुणहाणि । अवत्त० असंखे० गुणा। असंखे०गुणवड्डि० असंखे०गुणा । असंखे०भागवडि० संखे० गुणा । असंखे०भागहाणि० असंखे०गुणा । अणंताणु०४ सव्वत्थोवा अवत्त० । असंखे०गुणहाणि. असंखे०गुणा । संखे.. भागवड्रि० असंखे०गुणा । संखे गुणवडि० संखेगुणा । असंखे०गुणवडि. असंखे०गुणा। अवहि. असंखे०गुणा। असंखे०भागहाणि. असंखे०गुणा । असंखेभागवडि० संखेज्जगुणा । इत्थि-णवूस०-चदुणोक० ओघं । णवरि इथि०-णवंस. असंखे०गुणहाणि० पत्थि । एवं सत्तसु पुढवीसु पंचिंदियतिरिक्ख०३ देवा भवणादि जाव उपरिमगेवज्जा ति । णवरि आणदादिसु पुरिस० भयभंगो। णqसय० इत्थिाभंगो । मिच्छ०-अणंताणु०४ वडि-हाणीणं विवज्जासो च कायव्यो।। हैं। उनसे असंख्यातभागवृद्धिवाले जीव संख्यातगुणे हैं ।
६४१३. आदेशसे नारकियोंमें मिथ्यात्व, बारह कषाय, पुरुषवेद, भय और जुगुप्साकी अवस्थितविभक्तिवाले जीव सबसे स्तोक हैं । उनसे असंख्यातभागहानिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे असंख्यातभागवृद्धिवाले जीव संख्यातगुणे हैं। इतनी विशेषता है कि पुरुषवेदकी वृद्धि और हानिका विपर्यास करना चाहिए। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातगुणहानिवाले जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे अवक्तव्यविभक्तिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे असंख्यातगुणवृद्धिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे असंख्यातभागवृद्धिवाले जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे असंख्यातभागहानिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी अवक्तव्यविभक्तिवाले जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे असंख्यातगुणहानिवाले जीव असंख्यातगणे हैं। उनसे संख्यातभागवृद्धिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे संख्यातगुणवृद्धिवाले जीव संख्यातगणे हैं। उनसे असंख्यातगुणवृद्धिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे अवस्थितविभक्तिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे असंख्यातभागहानिवाले जीव असंख्यातगणे हैं। उनसे असंख्यातभागवृद्धिवाले जीव संख्यातगुणे हैं। स्त्रीवेद, नपुंसकवेद और चार नोकषायोंका भङ्ग ओघके समान है। इतनी विशेषता है कि स्त्रीवेद और नपुंसकवेदकी असंख्यातगुणहानि नहीं है। इसी प्रकार सातों पृथिवियोंमें तथा पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चत्रिक, सामान्य देव और भवनवासियोंसे लेकर उपरिम वेयक तकके देवोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि आनतादिकमें पुरुषवेदका भङ्ग भयके समान है। नपुंसकवेदका भङ्ग स्त्रीवेदके समान है। तथा मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी वृद्धि और हानिका विपर्यास करना चाहिए।
विशेषार्थ— यहाँ सामान्य नारकी आदिमें स्त्रीवेद, नपुंसकवेद और चार नोकषायोंका भङ्ग ओघके समान जाननेकी सूचना की है सो जहाँ पर ओघमें अनन्तगुणा कहा है वहाँ पर इन मार्गणाओंमें असंख्तातगुणा करना चाहिए। ये सब मार्गणाऐं असंख्यात संख्यावाली होनेसे मूलमें इस विशेषताका खुलासा नहीं किया है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org