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________________ २३० अयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ अणंताणु०४ सव्वत्थोवा अवत्त० । असंखे गुणहाणि० असंखे०गुणा । संखे०भागवडि० असंखे०गुणा । संखे०गुणवड्डि० संखे०गुणा । असंखे०गुणवडि० असंखे०गुणा । अवहि० अणंतगुणा । असंखे०भागहाणि असंखे०गुणा । असंखे०भागवडि० संखेजगुणा । तिण्हं संजलणाणं सव्वत्थोवा संखेज्जगुणवडि० । असंखे गुणहाणि. तत्तिया चेव । अवहि० अणंतगुणा । असंखे०भागहाणि असंखे० गुणा। असंखे०. भागवडि० संखे०गुणा । लोभसंजलणाए सव्वत्थोवा संखे०गुणवडि। अवहि० अणंतगुणा । असंखे० भागहाणि. असंखे०गुणा। असंखे० भागववि० संखे०गुणा । इस्थि० सव्वत्थोवा असंखे गुणहाणि । असंखे०भागवड्डि० अर्णतगुणा । असंखे०भागहाणि० संखे० गुणा । पुरिस० सम्वत्थोवा संखेज्जगुणवडि० । असंखे०गुणहाणि. तत्तिया चेव । अवहि. असंखे० गुणा। असंखे० भागवडि. अणंतगुणा। असंखे०भागहाणि. संखेगुणा। णqस० सम्बत्थोवा असंखे०गुणहाणि । असंखे०भागहाणि. अणंतगुणा । असंखे०भागवडि० संखे गुणा । एवमरदि-सोगा० । णवरि असंखे० गुणहाणि. णत्थि । हस्स-रइ० सव्वत्थोवा असंखे०भागवडि। असंखे०भागहाणि० संखे० गुणा । भय-दुगुंछा० सव्वत्थोवा अवहि० । असंखे० भागहा० HHHHI संख्यातगुणे हैं। उनसे असंख्यातभागहानिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी अवक्तव्यविभक्तिवाले जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे असंख्यातगुणहानिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे संख्यातभागवृद्धिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे संख्यातगुणवृद्धिवाले जीव संख्यातगुणे हैं । उनसे असंख्यातगुणवृद्धिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । उनसे अवस्थितविभक्तिवाले जीव अनन्तगुणे हैं। उनसे असंख्यातभागहानिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे असंख्यातभागवृद्धिवाले जीव संख्यातगुणे हैं। तीन संज्वलनोंकी संख्यातगुणवृद्धिवाले जीव सबसे स्तोक हैं। असंख्यातगुणहानियाले जीव उतने ही हैं। उनसे अवस्थितविभक्तिवाले जीव अनन्तगुणे हैं। उनसे असंख्यातभागहानिवाले जीव असंख्यातगुरणे हैं। उनसे असंख्यातभागवृद्धिवाले जीव संख्यातगुणे हैं। लोभसंज्वलनकी संख्यातगुणवृद्धिवाले जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे अवस्थितविभक्तिवाले जीव अनन्तगुणे हैं। उनसे असंख्यातभागहानिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे असंख्यातभागवृद्धिवाले जीव संख्यातगुणे हैं। स्त्रीवेदकी असंख्यातगुणहानियाले जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे असंख्यातभागवृद्धिवाले जीव अनन्तगुणे हैं। उनसे असंख्यातभागहानिवाले जोव संख्यातगुणे हैं। पुरुषवेदकी संख्यातगुणवृद्धिवाले जीव सबसे स्तोक हैं। असंख्यातगुणहानिवाले जीव उतने ही हैं। उनसे अवस्थितविभक्तिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे असंख्यातभागवृद्धिवाले जीव अनन्तगुणे हैं। उनसे असंख्यातभागहानिवाले जीव संख्यातगुणे हैं। नपुंसकवेदकी असंख्यातगुणहानिवाले जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे असंख्यातभागहानिवाले जीव अनन्तगुणे हैं। उनसे असंख्यातभागवृद्धिवाले जीव संख्यातगुणे हैं। इसी प्रकार अरति और शोककी अपेक्षा अल्पबहुत्व है। इतनी विशेषता है कि असंख्यातगुणहानि नहीं है । हास्य और रतिकी असंख्यातभागवृद्धिवाले जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे असंख्यातभागहानिवाले जीव संख्यातगुणे हैं। भय और जुगुप्साकी अवस्थितविभक्तिवाले जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे असंख्यातभागहानिवाले जीव असंख्यातगुणे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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