________________
२२६
wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwww
गा० २२]
उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए वड्डीए अप्पाबहुअं ४१०. अणुदिसादि जाब सबहा ति मिच्छ०-सम्म०-सम्मामि०-इथि०णqस० असंखे० भागहाणि. पत्थि अंतरं । अगंताणु०४ असंखेज़भागहाणि० णत्थि अंतरं । असंखे० गुणहाणि० जह० एगस०, उक्क० बासपुधत्तं । सव्वहे पलिदो० संखे०भागो। बारसक०--पुरिसवे०--भय--दुगुंछ. असंखे० भागवभि-हाणि. णत्थि अंतरं । अवहि. जह० एगस०, उक्क० असंखेज्जा लोगा। हस्स-रइ--अरइ--सोगाणं असंखे०भागवटि-हाणि गत्थि अंतरं । एवं जाव अणाहारि ति ।
४११. भावाणुगमेण दुविहो णिद्देसो-ओघेण आदेसेण य । ओघेण अहावीसं पयडीणं सव्वपदा चि को भावो ? ओदइओ भावो । एवं जाव अणाहारि ति।
६४१२. अप्पाबहुआणुगमेण दुविहो णिद्दे सो---ओघेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छत्त-अहक० सव्वत्थोवा असंखे०गुणहाणि । अहि. अणंतगुणा । असंखे०भागहाणि. असंखे० गुणा। असंखे० भागवडि० संखे०गुणा। सम्मत्त--सम्माभि० सव्वत्थोवा असंखे० गुणहाणि । अवत्त० असंखे०गुणा । असंखेज्जगुणवडि० असंखे०. गुणा । असंखे० भागवडि० संखेजगुणा । असंखे०भागहाणि. असंखे०गुणा ।
$ ४१०. अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, स्त्रीवेद और नपुंसकवेदकी असंख्यातभागहानिका अन्तर काल नहीं है। अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी असंख्यातभागहानिका अन्तर काल नहीं है। असंख्यातगुणहानिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्वप्रमाण है । मात्र सर्वार्थसिद्धिमें पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। बारह कषाय, पुरुषवेद, भय और जुगुप्साकी असंख्यातभागवृद्धि और असंख्यातभागहानिका अन्तर काल नहीं है। अवस्थितविभक्तिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात लोकप्रमाण है। हास्य, रति, अरति और शोककी असंख्यातभागवृद्धि
और असंख्यातभागहानिका अन्तर काल नहीं है । इसीप्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए।
इसप्रकार अन्तर काल समाप्त हुआ। ४११. भावानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। ओघसे अट्ठाईस प्रकृतियोंके सब पदोंका कौन भाव है ? औदयिक भाव है। इसीप्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए।
इसप्रकार भाव समाप्त हुआ। ४१२. अल्पबहुत्वानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-श्रोघ और आदेश । ओघसे मिथ्यात्व और आठ कषायोंकी असंख्यातगुणहानिवाले जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे अवस्थितविभक्तिवाले जीव अनन्तगुणे हैं। उनसे असंख्यातभागहानिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे असंख्यातभागवृद्धिवाले जीव संख्यातगुणे हैं। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातगुणहानिवाले जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे अवक्तव्यविभक्तिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे असंख्यातगुणवृद्धिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे असंख्यातभागवृद्धिवाले जीव
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org