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________________ २२८ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ पदेसविहत्ती ५ देवगई० देवा भवणादि जाव उवरिमगेवज्जा त्ति । ४०८. पंचिंदियतिरिक्ख अपज्ज० मिच्छ०-सोलसक०-भय-दुगुंछा० असंखे०. भागवड-हाणि. पत्थि अंतरं । अवहि० ज० एगसमओ, उक्क० असंखेज्जा लोगा। सम्म०-सम्मामि० असंखे० भागहाणि. पत्थि अंतरं । असंखेज्जगुणहाणि. ज. एगस०, उक्क० चवीसमहोरते साधिगे। सत्तणोक० असंखे०भागवडि-हाणि. पत्थि अंतरं। ४०६. मणुसगई० मणुसा० पंचिंदियतिरिक्खभंगो। णवरि सेढिपदाणमोघं । मणुसपज्जत्ता० एवं चेत्र । णवरि इत्थिवेद० असंखे० गुणहाणि० पत्थि । मणुसिणीसु एवं चेव । णवरि पुरिस०-णस० असंखे० गुणहाणि० णस्थि ! णारि जम्हि छम्मासा तम्हि वासपुधत्तं । मणुस अपज मिच्छ०-सोलसक०-भय-दुगुंछा० असंखे०भागवडिहाणि. जह० एगममो, उक्क० पलिदो० असंखे० भागो। अवहि० ज० एगस.. उक्क० असंवेज्जा लोगा। सम्म०-सम्मामि० असंखे० भागहाणि--असंखे०गुणहाणि० जह. एगसमो, उक्क पलिदो० असंवे० भागो। सतगोक० असंखे० भागवडिहाणि. जह० एगस०, उक्क० पलिदो. असंखे०भागो।। तिर्यञ्चत्रिक, देवगतिमें सामान्य देव और भवनवासियोंले लेकर उपरिम वेयक तकके देवोंमें जानना चाहिए। ६४०८. पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्तकोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय, भय और जुगुप्साकी असंख्यातभागवृद्धि और असंख्यातभागहानिका अन्तर काल नहीं है । अवस्थितविभक्तिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात लोकप्रमाण है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातभागहानिका अन्तर काल नहीं है। असंख्यातगुणहानिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक चौबीस दिन-रात है। सात नोकषायोंकी असंख्यातभागवृद्धि और असंख्यातभागहानिका अन्तरकाल नहीं है। ६४०६. मनुष्यगतिमें मनुष्योंमें पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चोंके समान भङ्ग है। इतनी विशेषता है कि श्रेणिसम्बन्धी पदोंका भङ्ग ओघके समान है। मनुष्यपर्याप्तकोंमें इसीप्रकार है। इतनी विशेषता है कि स्त्रीवेदकी असंख्यातगुणहानि नहीं है। मनुष्यनियों में इसीप्रकार है। इतनी विशेषता है कि पुरुषवेद और नपुंसकवेदकी असंख्यातगुणहानि नहीं है। इतनी और विशेषता है कि जहाँ पर छह महीना अन्तर काल कहा है वहाँ पर वर्षपृथक्त्व कहना चाहिए । मनुष्य अपर्याप्तकोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय, भय और जुगुप्साकी असंख्यातभागवृद्धि और असंख्यातभागहानिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। अवस्थितविभक्तिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात लोकप्रमाण है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातभागहानि और असंख्यातगुणहानिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट शान्तर पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। सात नोकषायोंकी असंख्यातभागवृद्धि और असंख्यातभागहानिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर पल्यके असंख्तातवें भागप्रमाण है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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