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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ पदेसविहत्ती ५ णिरोघं । णवरि सगपोसणं । ____$ ३६६. तिरिक्खा० मिच्छ०--सोलसक०--भय-दुगुंछ० असंखे०भागवडिहाणि-अवढि० सव्वलोगो। सम्म०-सम्मामि० असंखे०भागहाणि-असंखे०गुणहाणि. लोग० असंखे भागो सव्वलोगो वा । सेसपदा० लोग० असंखे०भागो । अणंताणु०४ संखे भागवडि-संखे० गुणवडि-असंखे०गुणवडि-हाणि-अवत्त० लोग० असंखे०भागो । पुरिस० असंखे०भागवडि-हाणि. सव्वलोगो। अवहि लोग० असंखे०भागो। इत्थि०-णवंस०हस्स-रइ-अरइ-सोगाणं असंखे०भागवडि-हाणि सव्वलोगो ।
३६७. पंचिंदियतिरिक्ख ३ मिच्छत्त-बारसक०भय-दुगुंछा० असंखे०भागवडिहाणि-अवहि० लोग० असंखे०भागो सव्वलोगो वा । सम्म०-सम्मामि० असंखे०भागहा०-असंखे०गुणहाणि. लोग० असंखे०भागो सव्वलोगो वा। सेसपदवि० लोग० असंखे०भागो। अणंताणु०४ असंखे०भागवडि-हाणि-अवहि० लोग० असंखे० भागो सव्वलोगो वा । संखे०भागवडि०-संखे०गुणवडि-असंखे०गुणवडि-हाणि-अवत्त० लोग० असंखे०भागो।। इत्थि० असंखे०भागवडि० लोग० असंखे० भागो दिवड
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नारकियोंके समान भङ्ग है। इतनी विशेषता है अपना अपना स्पर्शन कहना चाहिए।
६३६६. तिर्यञ्चोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय, भय और जुगुप्साकी असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातभागहानि और अवस्थितविभक्तिवाले जीवोंने सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातभागहानि और असंख्यातगुणहानिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष पवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी संख्यातभागवृद्धि, संख्यातगुणवृद्धि, असंख्यातगुणवृद्धि, असंख्यातगुणहानि और अवक्तव्यविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। पुरुषवेदकी असंख्यातभागवृद्धि और असंख्यातभागहानिवाले जीवोंने सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अवस्थितविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। स्त्रीवेद, नपुंसकवेद हास्य, रति, अरति और शोककी असंख्यातभागवृद्धि और असंख्यातभागहानिवाले जीवोंने सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है।
६३९७. पञ्चन्द्रिय तिर्यञ्चत्रिकमें मिथ्यात्व, बारह कषाय, भय और जुगुप्साकी असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातभागहानि और अवस्थितविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग
और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातभागहानि और असंख्यातगुणहानिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष पदविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातभागहानि और अवस्थितविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्तातवें भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। संख्यातभागवृद्धि, संख्यातगुणवृद्धि, असंख्यातगुणवृद्धि, असंख्यातगुणहानि और अवक्तव्यविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। स्त्रीवेदकी असंख्यात
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