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गा० २२] उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए वड्डीए पोसणं चोदस० । असंखे०भागहा० लोग० असंखे०भागो सव्वलोगो वा । पुरिस० असंखे०भागवडि० लोग० असंखे०भागो छचोदस० । असंखे भागहाणि लोग० असंखे०. भागो सव्वलोगो वा । अवहि० तिरिक्खोघं । णवूस०-हस्स-रइ-अरइ-सोगाणं असंखे०भागवडि-हाणि० लोग० असंखे०भागो सबलोगो वा ।
३६८, पंचिंदिय-तिरिक्खअपज० मिच्छ०--सोलसक०--भय-दुगुंछा० असंखे०भागवडि-हा०--अवहि० लोग० असंखे०भागो सव्वलोगो वा। सम्म०. सम्मामि० असंखे०भागहाणि-असंखे गुणहाणि, लोग० असंखे०भागो सव्वलोगो वा । इत्थि० पुरिस० असंखे०भागवडि० लोग० असंखे भागो। दोण्हमसंखे०भागहाणि० णसहस्स-रदि-अरदि-सोगाणं असंखे०भागवड्डि-हाणि० लोग० असंखे०भागो सव्वलोगो वा । मणुसगईए मणुसपज्ज०-मणुसिणीसु पंचिंदियतिरिक्खभंगो। णवरि जम्हि वज्जो तम्हि लोग० असंखे०भागो। सेढिपदा० लोग० असंखे०भागो । मणुसअपज. पंचिं०तिरि०अपज्जत्तभंगो ।
३६६. देवगईए देवेसु मिच्छत्त-बारसक०-भय-दुगुंछा० असंखे०भागवडि
भागवृद्धिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवेंभाग और बसनालीके कुछ कम डेढ़ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। असंख्यातभागहानिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। पुरुषवेदकी असंख्यातभागवृद्धिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके कुछ कम छह बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। असंख्यातभागहानिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पशन किया है। अवस्थितविभक्तिवाले जीवोंका स्पर्शन सामान्य तियञ्चोंके समान है। नपुंसकवेद, हास्य, रति, अरति और शोककी असंख्यातभागवृद्धि और असंख्यातभागहानिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका रपर्शन किया है।
६३६८. पञ्चन्द्रिय तिर्यश्च अपर्याप्तकोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय, भय और जुगुप्साकी असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातभागहानि और अवस्थितविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातर्वे भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातभागहानि और असंख्यातगुणहानिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातावें भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। स्त्रीवेद और नपुंसकवेदकी असंख्यातभागवृद्धिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। दोनोंकी असंख्यातभागहानिवाले जीवोंने तथा नपुंसकवेद, हास्य, रति, अरति और शोककी असंख्यातभागवृद्धि और असंख्यातभागहानिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। मनुष्यगति में मनुष्यपर्याप्त और मनुष्यिनियोंमें पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चोंके समान भङ्ग है। इतनी विशेषता है कि जहाँ पर वर्जनीय है वहाँ पर लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण स्पर्शन है। तथा श्रेणिसम्बन्धी पदवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। मनुष्य अपर्याप्तकोंमें पञ्चन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्तकोंके समान भङ्ग है।
६३६६. देवगतिमें देवोंमें मिथ्यात्व, बारह कषाय, भय और जुगुप्साकी असंख्यात
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