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________________ १०८ जयधवलासहिये कसायबाहुडे [पदेसविहत्ती ५ हस्स - रइ- अरइ- सोगाणं असंखे० भागवडि-हाणी० जह० एस० उक० अंतोमुहुर्त्तं । एवं जाव अणाहारिति । १३७८ णाणाजीवेहि भंगविचयाणुगमेण दुविहो णिद्देसो- ओघेण आदेसेण य । श्रघेण मिच्छ० असंखे ० भागवड्डि- हा० - अबडि० नियमा अत्थि । सिया एदे च असंखे० गुणहाणिविहत्तिओ च । सिया एदे च असंखे० गुणहा ० विहत्तिया च । एवमदृकसाय० । सम्म० - सम्मामि० असंखे ० भागहा ० णियमा अस्थि । सेसपदाणि भजियव्वाणि । श्रताणु०४ असंखे० भागवड्डि-हा० अवट्टि० णियमा अस्थि । पदाणि भव्त्रिाणि । चदुसंज० एवं चेव । इत्थि० - नपुंस० असंखे० भागवड्डि- हा ० णियमा अस्थि । सिया एदे च असंखे० गुणहा ० विहत्तिओ च । सिया एदे च असंखे • गुणहाणिविहत्तिया च । पुरिस० असंखे • भागवड्डि- हाणि० णियमा अत्थि । सेसपदाणि भणिज्जाणि । हस्स - रइ- अरइ-सोगाणं असंखे० भागवड्डि-हाणि० णियमा अस्थि । भय-दुर्गुछा • असंखे ० भागवड्डि-हाणि अवडि० णियमा अस्थि । 1 ६३७६, आदेसेण रइय ० मिच्छत्त - बारसक० -- पुरिस०--भय-- दुर्गुछा ० असंखे० भागवड्डि- हाणि० नियमा अस्थि ।। या एदे च अवडिओ च । सिया एदेव उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम अपनी अपनी स्थितिप्रमाण है । हास्य, रति, अरति और शोककी असंख्यात भागवृद्धि और असंख्यातभागहानिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । इसीप्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए । इस प्रकार अन्तरकाल समाप्त हुआ । ६ ३७८. नाना जीवोंकी अपेक्षा भङ्ग विचयानुगमसे निर्देश दो प्रकारका है— श्रोध और आदेश। ओघसे मिध्यात्वकी असंख्यात भागवृद्धि, असंख्यात भागहानि और अवस्थितविभक्तिवाले जीव नियमसे हैं । कदाचित् ये जीव हैं और असंख्यातगुणहानिविभक्तिवाला एक जीव है । कदाचित् ये जीव हैं और असंख्यातगुणहाणिविभक्तिवाले नाना जीव हैं । इसी प्रकार आठ कषायों की अपेक्षा भङ्ग जानना चाहिए। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व की असंख्यात भागा निवा जीव नियमसे हैं। शेष पद भजनीय हैं । अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी असंख्यात भागवृद्धि, असंख्यातभागहानि और अवस्थितविभक्तिवाले जीव नियमसे हैं। शेष पद भजनीय हैं। चार संज्वलनोंकी अपेक्षा इसी प्रकार भङ्ग है । स्त्रीवेद और नपुंसकवेदकी असंख्यात भागवृद्धि और असंख्यात भागहानिवाले जीव नियमसे हैं । कदाचित् ये जीव हैं और असंख्यातगुणहानिवाला एक जीव है । कदाचित् ये जीव हैं और असंख्तातगुणहानिवाले अनेक जीव हैं । पुरुषवेद्की असंख्यातभागवृद्धि और असंख्यात भागहानिवाले जीव नियमसे हैं। शेष पद भजनीय हैं । हास्य, रति, अरति और शोककी असंख्यात भागवृद्धि और असंख्यात भागहानिवाले जीव नियमसे हैं । भय और जुगुप्साकी असंख्यात भागवृद्धि, असंख्यात भागहानि और अवस्थितविभक्तिवाले जीव नियमसे हैं । $ ३७८. आदेशसे नारकियों में मिथ्यात्व, बारह कषाय, पुरुषवेद, भय और जुगुप्साकी असंख्यातभागवृद्धि और असंख्यात भागहानिवाले जीव नियमसे हैं । कदाचित् ये जीव हैं और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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