SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 231
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०४ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ पदेसविहत्ती ५ उक्क० तिण्णि पलिदो० सादिरेयाणि । असंखे० भागहा० ज० एगस०, उक० पलिदो० असंखे०भागो । अवढि० जह० एगस०, उक्क० असंखेज्जा लोगा। सम्म०-सम्मामि० असंखे० भागवडी० जह० पलिदो० असंखे०भागो, उक्क. उघड्रपोग्गलपरियट्ट। असंखे०भागहा० ज० एगस०, उक्क० उवडपोग्गलपरियट्टा । असंखे०गुणवड्डी० हा० अवत्त. ज. पलिदो० असंखे०भागो, उक्क. उवडपोग्गलपरियट्ट। अणंताणु०४ असंखे०भागवडी० हा० ज० एगस०, उक्क० तिणि पलिदो० सादिरेयाणि । हाणीए देसूणा । संखेज्जभागवड्डी० संखेगुणवडी० असंखे०गुणबड्डी० हाणी० अवत्त० ज० अंतोमुहुत्तं, उक्क० उवडपोग्गल० । अवहि० ज० एगस०, उक्क० असंखेज्जा लोगा। बारसक०-भय-दुगुंछा० असंखे०भागवड्डी० हाणी. जह० एगस०, उक्क० पलिदो० असंखे० भागो । अवहि० ज० एगस०, उक्क० असंखेजा लोगा। एवं पुरिस । णवरि अवहि० ओघं । इत्थि० असंखे०भागवड्डि० ज० एगस०, उक्क० तिण्णि पलिदो० देसूणाणि । असंखे० भागहा. जह० एगस०, उक्क. अंतोमु० । णवूस० असंखे०भागवडी० ज० एगस०, उक्क. पुव्वकोडी देसूणा । असंखे०भागहा. जह० एगस.. उक्क० अंतोमु.। हस्स-रइ-अरइ-सोगाणं असंखे०भागवडी० हाणी० ज० एगस०, समय है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक तीन पल्य है। असंख्यातभागहानिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। अवस्थितविभक्तिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात लोकप्रमाण है । सम्यक्त्व और सम्यमिथ्यात्व की असंख्यातभागवृद्धिका जघन्य अन्तर पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है और उत्कृष्ट अन्तर उपाधं पुद्गल परिवर्तनप्रमाण है। असंख्यातभागहानिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर उपाध पुद्गल परिवर्तनप्रमाण है। असंख्यातगुणवृद्धि, असंख्यातगुणहानि और अवक्तव्यविभक्तिका जघन्य अन्तर पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है और उत्कृष्ट अन्तर उपार्ध पुद्गल परिवर्तनप्रमाण है। अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी असंख्यातभागवृद्धि और असंख्यातभागहानिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक तीन पल्य है। मात्र असंख्यातभागहानिका उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तीन पल्य है । संख्यातभागवृद्धि, संख्यातगुणवृद्धि, असंख्यातगुणवृद्धि, असंख्यातगुणहानि और अवक्तव्यविभक्तिका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर उपाधं पुद्गल परिवर्तनप्रमाण है। अवस्थितविभक्तिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात लोकप्रमाण है। बारह कषाय, भय और जुगुप्साकी असंख्यातभागवृद्धि और असंख्यातभागहानिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। अवस्थितविभक्तिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात लोकप्रमाण है। इसी प्रकार पुरुषवेदकी अपेक्षासे अन्तरकाल जानना चाहिए। इतनी विशेषता हैं कि अवस्थितविभक्तिका अन्तरकाल ओघके समान है। स्त्रीवेदकी असंख्यातभागवृद्धिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तीन पल्य है। असंख्यातभागहानिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। नपुंसकवेदको असंख्यातभागवृद्धिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम एक पूर्वकोटि है। असंख्यातभागहानिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। हास्य, रति, अरति और शोककी असंख्यातभागवृद्धि और असंख्यातभागहानिका जघन्य अन्तर एक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy