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________________ २०३ गा० २२] उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए वड्डीए अंतरं $ ३७१. आदेसेण गेरइय० मिच्छ० असंखे०भागवडी० जह० एगस०, उक्क. तेत्तीसं सागरो० देसूणाणि । एवमवहि० । असंखे०भागहाणी० जह० एयस०, उक्क. पलिदो० असंखे भागो। सम्म०-सम्मामि० असंखे०भागवडि-असंखे गुणवडि-हाणिअवत्त० ज० पलिदो० असंखे०भागो, उक० तेतीसं सागरो० देसूणाणि । असंखे०भागहा. जह० एगस०, उक० तेत्तीसं सागरो० देसूणाणि । अणंताणु०४ असंखे०भागवड्डी० अवहि० ज० एगस०, उक्क० तेत्तीसं. सागरो० देसूणाणि । संखे०भागवडी० संखे० गुणवडी. असंखे०गुणवडी० हाणी० अवत्त० ज० अंतोमु०, उक. तेत्तीसं सागरो० देसूणाणि । बारसक०-पुरिस०-भय-दुगुंछा० असंखे०भागवडी० हा० ज० एगसमओ, उक० पलिदो० असंखे०भागो। अवहि० ज० एगस०, उक्क० तेत्तीसं सागरो० देसणाणि । इत्थि०-णस० असंखे०भागवडी० ज० एगस०, उक० तेत्तीसं सागरो० देसूणाणि । असंखे०भागहाणी. जह० एगस०, उक्क० अंतोमु०। हस्स-रइ-अरइ-सोगाणं असंखे०भागवड्डी० हाणी. जह० एगसमओ, उक्क० अंतोमु० । एवं सत्तसु पुढवीसु । णवरि जम्हि तेत्तीसं सागरोवमाणि तम्हि सगहिदी देसूणा । ३७२. तिरिक्खगई० तिरिक्खा मिच्छ० असंखे०भागवड्डी० जह० एगस०, ३७. आदेशसे नारकियोंमें मिथ्यात्वकी असंख्यातभागवृद्धिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तेतीस सागर है। इसी प्रकार अवस्थितविभक्तिका अन्तरकाल है। असंख्यातभागहानिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातगुणवृद्धि, असंख्यातगुणहानि और अवक्तव्यविभक्तिका जघन्य अन्तर पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तेतीस सागर है। असंख्यातभागहानिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तेतीस सागर है । अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी असंख्यातभागवृद्धि और अवस्थितविभक्तिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तेतीस सागर है। संख्यातभागवृद्धि, संख्यातगुणवृद्धि, असंख्यातगुणवृद्धि, असंख्यातगुणहानि और अवक्तव्यविभक्तिका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तेतीस सागर है । बारह कपाय, पुरुषवेद, भय और जुगुप्साकी असंख्यातभागवृद्धि और असंख्यातभागहानिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। अवस्थितविभक्तिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तेतीस सागर है । स्त्रीवेद और नपुंसकवेदकी असंख्यातभागवृद्धिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तेतीस सागर है। असंख्यातभागहानिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुंहूर्त है। हास्य, रति, अरति और शोककी असंख्यातभागवृद्धि और असंख्यातभागहानिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। इसी प्रकार सातों पृथिवियोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि जहां पर कुछ कम तेतीस सागर कहा गया है वहां पर कुछ कम अपनी अपनी स्थिति कहनी चाहिए। ६३७२. तियश्चगतिमें तिर्यञ्चोंमें मिथ्यात्वकी असंख्यातभागवृद्धिका जघन्य अन्तर एक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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