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________________ गा० २२] उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए वड्डीए कालो १६७ उक्क० तिण्णि पलिदो० सादिरेयाणि । असंखे गुणवड्डी० जह० उक्क. अंतोमु० । असंखे०गुणहा० अवत्त० ज० उक्क० एगस । अणंताणु० असंखे भागवडी० अवहि० ओघं । असंखे०भागहाणी. जह० एगस०, उक्क० तिणिपलिदो० सादिरेयाणि । संखेज्जभागवड्डी० संखे० गुणवडी० ज० एगसमओ, उक्क० आरलि. असंखे०भागो। असंखे गुणवडी० ज० एगस०, उक्क० आवलिया समयणा। असंखे गुणहा० अवत्त० ज. उक० एगस० । इत्थि. असंखे० भागवड्डी० जह० एगस०, उक० अंतोमु० । असंखे०भागहाणी. जह० एगस०, उक्क० तिष्णि पलिदोवमाणि । एवं णबुस । हस्स-रइ-अरइ-सोगाणं असंखे०भागवड्डी० हाणी. जह० एगस०, उक्क० अंतोमु० । एवं पंचिंदियतिरिक्ख०३। णवरि जोणिणीसु इत्थि-णवूस. असंखेभागहो. तिण्णि पलिदो० देसूणाणि । $ ३६६. पंचि०तिरिक्ख अपज्ज० मिच्छत्त०-सोलसक०-भय-दुगुंडा० असंखे० भागवडि-हाणी. जह० एगस०, उक्क० अंतोमु०। अवहि० न० एगस०, उक० सत्तह समया। सम्म०-सम्मामि० असंखे भागहा० ज० एगस०, उक्क० अंतोमु०पुधत्तं । असंखे०गुणहा० जह० उक्क० एगस० । सत्तणोक० असंखे०भागवडि-हाणि. जह० एगस०, उक्क० अंतोमु० । तीन पल्य है । असंख्यातगुणवृद्धिका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । संख्यातगुणहानि और अवक्तव्यविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी असंख्यातभागवृद्धि और अवस्थितविभक्तिका भङ्ग ओघके समान है। असंख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल साधिक तीन पल्य है। संख्यातभागवृद्धि और संख्यातगुणवृद्धिका जधन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। असंख्यातगुणवृद्धिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल एक समय कम प्रावलिप्रमाण है। असंख्यातगुणहानि और अवक्तव्यविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । स्त्रीवेदकी असंख्यातभागवृद्धिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। असंख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल तीन पल्य है। इसीप्रकार नपुंसकदेदकी अपेक्षासे काल जानना चाहिए। हास्य, रति, अरति और शोककी असंख्यातभागवृद्धि और असंख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। इसीप्रकार पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चत्रिकमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च योनिनियोंमें स्त्रीवेद और नपुंसकवेदकी असंख्यातभागहानिका उत्कृष्ट काल कुछ कम तीन पल्य है। ६३६६. पञ्चन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्तकोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय, भय और जुगुप्साकी असंख्यातभागवृद्धि और असंख्याभागहानिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। अवस्थितविभक्तिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल सात आठ समय है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त पृथक्त्वप्रमाण है। असंख्यातगुणहानिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। सात नोकषायोंकी असंख्यातभागवृद्धि और असंख्यातभागहानिका जघन्य काल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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