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________________ १६६ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ जह० उक्क० अंतोमु० । असंखे०गुणहाणी० अवत्त० जह० उक्क० एगस० । अणंताणु०४ असंखे०भागवड्डी० अवहि० मिच्छत्तभंगो । हाणी० जह० एगस०, उक्क० तेत्तीसं सा० देसू० । संखे०भागवड्डी० संखे०गुणवड्डी० जह० एगस०, उक्क० आवलि० असंखे०भागो। असंखे०गुणवडी० जह० एगस०, उक्क० अंतोमु० । असंखे०गुणहाणी. अवत्त० ज० उक्क. एगस० । इत्थि०-णस० असंखे० भागवडी० ज० एगस०, उक० अंतोमु० । हाणी. ज. एगस०, उक्क० तेत्तीसं सागरो० देसूणाणि । पुरिस. असंखे०भागवड्डी० हाणी० ज० एगस०, उक्क० पलिदो० असंखे०भागो । अवहि. जह० एगसमओ, उक्क० सत्तह समया। चदुणोक० ओघं । एवं सत्तसु पुढवीसु । णवरि जम्हि तेत्तीसं सागरो० देसूणाणि तम्हि सगहिदी देसूणा । सत्तम.पुढविवज्जासु मिच्छ०-अणंताणु० सगहिदी। ३६५. तिरिक्खगदीए तिरिक्खेसु मिच्छ० असंखे०भागवड्डी० अवहि. ओघं । असंखे०भागहाणी. जह० एगस०, उक्क० तिण्णि पलिदो० सादिरेयाणि । बारसक०-पुरिस-भय-दुगुंछा० असंखे० भागवडी० हाणी. अवहि. ओघं । सम्म०सम्मामि० असंखे०भागवडी० जह० उक्क० अंतोमु० । असंखे०भागहा० ज० एगस०, है। असंख्यातगुणहानि और अवक्तव्यविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी असंख्यातभागवृद्धि और अवस्थितिविभक्तिका भङ्ग मिथ्यात्वके समान है। असंख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल कुछ कम तेतीस सागर है। संख्यातभागवृद्धि और संख्यातगुणवृद्धिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यात भागप्रमाण है। असंख्यातगुणवृद्धिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । असंख्यातगुणहानि और अवक्तव्यविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। स्त्रीवेद और नपुंसकवेदकी असंख्यातभागवृद्धिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। असंख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल कुछ कम तेतीस सागर है। पुरुषवेदकी असंख्यातभागवृद्धि और असंख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। अवस्थितविभक्तिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल सात आठ समय है। चार नोकषायोंका भङ्ग शोधके समान है। इसी प्रकार सातों पृथिवियोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि जहाँ पर कुछ कम तेतीस सागर कहा है वहाँ पर कुछ कम अपनी अपनी स्थिति कहनी चाहिए । तथा सातवीं पृथिवीको छोड़कर शेषमें मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी अपनी अपनी स्थिति कहनी चाहिए। ६३६५. तिर्यञ्चगतिमें तिर्यञ्चोंमें मिथ्यात्वकी असंख्यातभागवृद्धि और अवस्थितविभक्तिका भङ्ग ओघके समान है। असंख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल साधिक तीन पल्य है। बारह कषाय, पुरुषवेद, भय और जुगुप्साकी असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातभागहानि और अवस्थितविभक्तिका भङ्ग अोधके समान है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातभागवृद्धिका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। असंख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल साधिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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