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________________ गा० २२] उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए वड्डीए कालो १६९ सादिरेयाणि । असंखे०गुणहाणी. जह० उक० एगस० । णस० असंखे०भागवडी० जह० एगस०, उक्क० अंतोमु० । असंखे०भागहाणी० जह० एगस०, उक्क० वेछावहिसागरो० तीहि पलिदो० सादिरयाणि । असंखे०गुणहाणी. जह० उक्क० एगसः । पुरिस० असंखे० भागवड्डी० हा० जह० एगस०, उक्क० पलिदो० असंखे० भागो। असंखे०. गुणहाणी. जह० उक्क० एगस० । अवहि. जह० एगस०, उक्क० सत्तह समया। हस्स-रइ-अरइ-सोगाणं असंखे०भागवड्डी० हाणी० जह० एगस०, उक० अंतोमु० । भय-दुगुंछा० असंखे०भागवड्डी० हा० जह० एगस०, उक्क० पलिदो० असंखे०भागो । अवहि० जह० एगस०, उक० सत्तह समया । ३६४. आदेसेण णेरइय० मिच्छ० असंखे० भागवडी० जह० एगस०, उक्क० पलिदो० असंखे०भागो। असंखे०भागहाणी. जह० एगस०, उक्क० तेत्तीसं सागरो. देसूणाणि । अवाहि. जह० एगस०, उक० सत्तह समया। बारसक-भय-दुगुंछा. असंखे०भागवड्डी० हा० जह० एगस०, उक्क० पलिदो० असंखे०भागो। अवहि० जह. एगस०, उक्क० सत्तह समया। सम्म०-सम्मामि० असंखे०भागवडी० जह० उक्क० अंतोमु०। हाणी० ज० एगस०, उक्क० तेत्तीसं सागरोवमाणि । असंखे० गुणवड्डी० छयासठ सागर है। असंख्यातगुणहानिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। नपुंसकवेदकी असंख्यातभागवृद्धिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है। असंख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल तीन पल्य अधिक दो छयासठ सागर है। असंख्यातगुणहानिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। पुरुषवेदकी असंख्यातभागद्धि और असंख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। असंख्यातगुणहानिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अवस्थितविभक्तिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल सात आठ समय है। हास्य, रति, अरति और शोककी असंख्यातभागवृद्धि और असंख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। भय और जुगुप्साकी असंख्यातभागवृद्धि और असंख्तातभागहानिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। अवस्थितविभक्तिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल सात आठ समय है। ६३६४. आदेशसे नारकियोंमें मिथ्यात्वकी असंख्यातभागवृद्धिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। असंख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल कुछ कम तेतीस सागर है। अवस्थितविभक्तिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल सात आठ समय है। बारह कषाय, भय और जुगुप्साकी असंख्यातभागवृद्धि और असंख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है । अवस्थितविभक्तिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल सात आठ समय है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातभागवृद्धिका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है। असंख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल तेतीस सागर है। असंख्यातगुणवृद्धिका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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