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________________ १६४ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ जह० उक्क० एगस० । अवहि० जह० एगस०, उक्क० सत्तह समया। सम्मत्त०सम्मामि० असंखे०भागवडी० जह० उक्क० अंतोमु०॥ असंखे०भागहाणी. जह० अंतोमु०, उक्क० वेछावहिसाग० पलिदो० असंखे०भागेण सादिरेयाणि । असंखे०गुणवड्डी० जह० उक० अंतोमु०। असंखेगुणहाणी० अवत्त० जह० उक्क० एगस० । अणंताणु० असंखे० भागवडी० जह• एगस०, उक्क० पलिदो० असंखे०भागो। हाणी० जह० एगस०, उक्क. वेछावहिसागरो० सादिरेवाणि। संखे०भागवड्डी० संखे० गुणवड्डी० जह० एगस०, उक० आवलि. असंखे०भागो। असंखे० गुणवडी० जह० एगस०, उक्क० अंतोमु० । अवहि० जह० एगस०, उक्क० सत्तह समया । अवत्त० असंखे० गुणहाणी० जहण्णुक्क० एगस० । अहकसाय० असंखे० भागवडी० हाणी. जह० एगस०, उक० पलिदो० असंखे०भागो। अवहि० जह० एगस०, उक्क० सत्तह समया। असंखे०गुणहाणी. जह० उक० एगस० । कोह-माण-मायासंजल० असंखे०भागवडी० हाणी० अवहि० अपञ्चक्खाणभंगो। संखे०गुणवडी. असंखे गुणहाणी. जह० उक्क० एगस०। एवं लोभसंजल० । णवरि असंखे.गुणहाणी पत्थि । इत्थि. असंखे० भागवड्डी० जह० एगस०, उक्क० अंतोमु० । असंखे० भागहा. जह० एगस०, उक्क० वेछावहिसागरो. साधिक दो छयासठ सागरप्रमाण है। असंख्यातगुणहानिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अवस्थितविभक्तिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल सात आठ समय है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातभागवृद्धिका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । असंख्यातभागहानिका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भाग अधिक दो छयासठ सागर है। असंख्यातगुणवृद्धिका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। असंख्यातगुणहानि और अवक्तव्यविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी असंख्यातभागवृद्धिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। असंख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल साधिक दो छयासठ सागर है। संख्यातभागवृद्धि और संख्यातगुणवृद्धिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। असंख्यातगुणवृद्धिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । अवस्थितविभक्तिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल सात आठ समय है। अवक्तव्यविभक्ति और असंख्यातगुणहानिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। आठ कषायोंकी असंख्यातभागवृद्धि और असंख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। अवस्थितविभक्तिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल सात आठ समय है । असंख्यातगुणहानि का जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। क्रोध, मान और मायासंज्वलनकी असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातभागहानि और अवस्थितविभक्तिका भङ्ग अप्रत्याख्यान कषायके समान है। संख्यातगुणवृद्धि और असंख्यातगुणहानिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। इसीप्रकार लोभसंज्वलनकी अपेक्षासे काल जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इसकी असंख्यातगुणहानि नहीं है। स्त्रीवेदकी असंख्यातभागवृद्धिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है। असंख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल साधिक दो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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