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________________ गा० २२] उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए वड्डीए कालो १६३ भागवड्डी हाणी अवहि० सम्मत्त-सम्मामि० असंखे० भागहाणी असंखे०गुणहाणी सत्तणोक. असंखे०भागवड्डि-हाणी कस्स ? अण्णद० । णवरि सम्मत्त-सम्मामि० असंखे०गुणहाणी क० १ अण्णद० अपच्छिमहिदिखंडयं गालेमाणस्स । ३६२. मणुसा० ओघं । एवं मणुसपज्जत्त-मणुसिणीसु । णवरि मणुसपज० इत्थिवेद० छण्णोकसायभंगो । मणुसिणीसु पुरिस-णवंस. छण्णोकसायभंगो । अणुदिसादि जाव सव्वहा ति दंसणतिय-अणंताणु० चउक्क०-इत्थि०-णवूस. असंखे.. भागहाणी कस्स ? अण्णद० । अणंताणु०४ असंखे गुणहाणी कस्स ? अण्णद० अणताणु० विसंजोए तस्स अपच्छिमे हिदिखंडए गुणसेढिसीसगेण सह आगाइदूण पिल्लेविदे । वारसक-पुरिस०-भय-दुगुंडा० असंखे०भागवड्डी हाणी अवहिद हस्स-रइ-अरइ--सोगाणं असंखे० भागवड्डी हाणी कस्स ? अण्णदरस्स । एवं जाव अणाहारि त्ति । ३६३. कालाणुगमेण दुविहो णिसो-ओघेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छत्तस्स असंखे० भागवडी० जह० एगस०, उक. पलिदो० असंखे०भागो। हाणी० जह० एगस०, उक्क० वेछावहिसागरो० सादिरेयाणि । असंखेगुणहाणी. असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातभागहानि और अवस्थितविभक्ति, सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातभागहानि और असंख्यातगुणहानि तथा सात नोकषायोंकी असंख्यातभागवृद्धि और असंख्यातभागहानि किसके होती है। अन्यतरके होती है । इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातगुणहानि किसके होती है ? अन्तिम स्थितिकाण्डकको गलानेवाले अन्यतरके होती है। ६३६२. मनुष्योंमें ओघके समान भङ्ग है। इसीप्रकार मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यनियोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि मनुष्यपर्याप्तकोंमें स्त्रीवेदका भङ्ग छह नोकषायोंके समान है। मनुष्यिनियोंमें पुरुषवेद और नपुंसकवेदका भङ्ग छह नोकपायोंके समान है। अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धितकके देवोंमें तीन दर्शनमोहनीय, अनन्तानुबन्धीचतुष्क, स्त्रीवेद और नपुंसक वेदकी असंख्यातभागहानि किसके होती है ? अन्यतरके होती है। अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी असंख्यातगुणहानि किसके होती है ? अनन्तानुबन्धीकी विसंयोजना करनेवाला जो अन्यतर जीव अन्तिम स्थितिकाण्डकको गुणश्रेणिशीर्षके साथ ग्रहण कर निर्लेपन करता है उसके होती है। बारह कषाय, पुरुषवेद, भय और जुगुप्साकी असंख्यातवृद्धि, असंख्यातभागहानि और अवस्थितविभक्ति तथा हास्य, रति, अरति और शोककी असंख्यातभागवृद्धि और असंख्यातभागहानि किसके होती है ? अन्यतरके होती है। इसीप्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए। इसप्रकार स्वामित्व समाप्त हुआ। $ ३६३. कालानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। श्रोघसे मिथ्यात्वकी असंख्यातभागवृद्धिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। असंख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल २५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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