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________________ १६२ जयधषलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहीत्ती ५ चरिमहिदिखंडगे अवगदे । अवत्तव्वं कस्स ? अण्णद० पढमसमयसम्माइहिस्स । अणंताणु०४ असंखे०भागवड्डी अहि. कस्स ? अण्णद० मिच्छाइहिस्स । असंखे०भागहाणी कस्स ? अण्ण० सम्माइहिस्स वा मिच्छाइहिस्स वा। संखे भागवड्डी संखे०गुणवड्डी असंखे०गुणवडी कस्स ? अण्णद० अणंताणु० विसंजोएदूण संजुत्तस्स आवलिगमिच्छादिहिस्स । असंखे०गुणहाणी कस्सं ? अण्णद० अणंताणु, विसंजोजेंतस्स अपच्छिमे हिदिखंडगे पिल्लेविदे। अवत्त० कस्स ? अण्णद० पढमसमयसंजुत्तस्स । वारसक०-भय-दुगुंछा० [ असंखे० ] भागवड्डी हाणी अवहि. कस्स ? अण्णद० सम्माइटिस वा मिच्छाइहिस्स वा। इत्थि-णस० असंखे०भागवड्डी कस्स ? अण्णद० मिच्छाइहिस्स । असंखे०भागहाणी कस्स ? अण्णद० सम्माइहि. मिच्छाइहिस्स वा । पुरिस० असंखे०भागवड्डी हाणी कस्स ? अण्णद० सम्माइहि. मिच्छाइहिस्स वा । अवट्टिदं कस्स ? अण्णद० सम्माइटिस्स । हस्स-रइ-अरइ-सोगाणं असंखे० भागवडी हाणी कस्स ? अण्णद. सम्मा० मिच्छाइहिस्स वा। एवं सतसु पुढवीसु तिरिक्खगदितिरिक्खा पंचिंदियतिरिक्ख३ देवा भवणादि जाव उवरिमगेवजा ति। $ ३६१. पंचि०तिरि०अपज० मिच्छत्त-सोलसक०-भय-दुगुंछा० असंखे०होती है ? जो छान्यतर उद्वेलना करनेवाला जीव चरम स्थितिकाण्डकको बिता चुका है उसके होती है। अवक्तव्यविभक्ति किसके होती है ? अन्यतर प्रथम समयवर्ती सम्यग्दृष्टिके होती है। अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी असंख्यातभागवृद्धि और अवस्थितविभक्ति किसके होती है ? अन्यतर मिथ्यादृष्टिके होती है। असंख्यातभागहानि किसके होती है ? अन्यतर सम्यग्दृष्टि या मिथ्यादृष्टिके होती है। संख्यातभागवृद्धि, संख्यातगुणवृद्धि और असंख्यातगुणवृद्धि किसके होती है ? जो अन्यतर जीव अनन्तानुबन्धीकी विसंयोजना करके अनन्तर संयुक्त होकर एक आवलि कालतक मिथ्यादृष्टि रहा है उसके होती है । असंख्यातगुणहानि किसके होती है ? अनन्तानुबन्धीकी विसंयोजना करनेवाले जिस अन्यतर जीवने अन्तिम स्थितिकाण्डकका निर्लेपन किया है उसके होती है। अवक्तव्यविभक्ति किसके होती है ? अन्यतर जीवके संयुक्त होनेके प्रथम समयमें होती है। बारह कषाय, भय और जुगुप्साकी असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातभागहानि और अवस्थितविभक्ति किसके होती है ? अन्यतर सम्यग्दृष्टि या मिथ्याष्टिके होती है। स्त्रीवेद और नपुंसकवेदकी असंख्यातभागवृद्धि किसके होती है ? अन्यतर मिथ्यादृष्टिके होती है। असंख्यातभागहानि किसके होती है ? अन्यतर सम्यग्दृष्टि या मिथ्यादृष्टिके होती है। पुरुषवेदकी असंख्यातभागवृद्धि और असंख्यातभागहानि किसके होती है ? अन्यतर सम्यग्दृष्टि या मिथ्यादृष्टिके होती है। अवस्थितविभक्ति किसके होती है ? अन्यतर सम्यग्दृष्टिके होती है। हास्य, रति, अरति और शोककी असंख्यातभागवृद्धि और असंख्यातभागहानि किसके होती है ? अन्यतर सम्यग्दृष्टि या मिथ्याष्टिके होती है। इसी प्रकार सातों पृथिवियोंमें तथा तियश्चगतिमें तियञ्च, पञ्चन्द्रिय तियश्चत्रिक, सामान्य देव और भवनवासियोंसे लेकर उपरिम प्रैवेयक तकके देवों में जानना चाहिए। ६३६१. पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च अपर्याप्तकोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय, भय और जुगुप्साकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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