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________________ १६८ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ ३६७. मणुसगदि० मणुस० मिच्छ० असंखे०भागवडि-अवहि. ओघं । असंखे०भागहाणी. जह० एगस०, उक्क० तिण्णि पलिदो० सादिरेयाणि । असंखे० गुणहाणी. ज० उक्क० एगस० । सम्म-सम्मामि० असंखे भागवडी. जह० उक्क० अंतोमुहुत्तं । असंखे०भागहा० ज० एगस०, उक्क० तिण्णि पलिदोवमाणि पुचकोडिपुधत्तेणब्भहियाणि । असंखे०गुणवड्डी० जह० उक्क० अंतोमु० । असंखे०गुणहाणी. अवत्त० जह० उक्क० एगस। अणंताणु०४ असंखे० भागवडी० ज० एगस०, उक्क० पलिदो० असंखे० भागो । हाणी० जह० एगस०, उक्क० तिण्णि पलिदो० सादिरेयाणि । संखे०भागवडि-संखे गुणवड्डी० जह० एगस०, उक्क० आवलि० असंखे०भागो। असंखे०गुणवड्डी० जह० एगस०, उक्क० आवलिया समयूणा। असंखे गुणहाणि-अवत्त. जह० उक्क० एगस० । अटक-पुरिसवेद० असंखे०भागवड्डि हाणी० जह० एगस०, उक्क० पलिदो० असंखे०भागो । असंखे०गुणहाणी. जह० उक० एगस० । अवहि. ज० एगस०, उक० सतह समया । तिण्णिसंज. असंखे०भागवडि-हाणी० जह० एगस०, उक्क० पलिदो० असंखे० भागो। संखे० गुणवडि-असंखे० गुणहाणी. जह. उक्क. एगसमओ। अवहि० ओघं। एवं लोहसंज० । णवरि असंखे०गुणहाणी wwwww wwwwwwwwwwwvvvvvv एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। ३६७. मनुष्यगतिमें मनुष्योंमें मिथ्यात्वकी असंख्यातभागवृद्धि और अवस्थितविभक्तिका भङ्ग ओघके समान है। असंख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल साधिक तीन पल्य है। असंख्यातगुणहानिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातभागवृद्धिका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। असंख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पूर्वकोटि पृथक्त्व अधिक तीन पल्य है। असंख्यातगुणवृद्धिका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। असंख्यातगुणहानि और अवक्तव्यविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी असंख्यातभागवृद्धिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। असंख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल साधिक तीन पल्य है। संख्यातभागवृद्धि और संख्यातगुणवृद्धिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। असंख्यातगुणवृद्धिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल एक समय कम एक प्रावलि है। असंख्यातगुणहानि और अवक्तव्यविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। आठ कषाय और पुरुषवेदकी असंख्यातभागवृद्धि और असंख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। असंख्यातगुणहानिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अवस्थितविभक्तिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल सात आठ समय है। तीन संज्वलनोंकी असंख्यातभागवृद्धि और असंख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है । संख्यातगुणवृद्धि और असंख्यातगुणहानिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अवस्थितविभक्तिका भङ्ग अोधके समान है। इसी प्रकार लोभसंज्वलनकी अपेक्षासे काल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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