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________________ १८५ गा० २२] उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए पदणिक्खेवे अप्पाबहुवे अण्णदरस्थ अवहाणं । मिच्छत्त-सम्मत्त-सम्मामि०-अणंताणु०४-इत्थि-णवुस० ज० हाणी कस्स ? अण्णद० । हस्स-रइ-अरइ-सोग० जहण्णवड्डि-हाणी कस्स ? अण्णद० । एवं जाव अणाहारि ति। ३५२. अप्पाबहुअं दुविहं-जहण्णमुक्कस्सं च । उक्कस्से पयदं । दुविहो णिद्देसो--ओघेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छत्तस्स सव्वत्थोवा उक्क० वडी । अवहाणं तत्तियं चेव । हाणी असंखे०गुणा। सम्मत्तस्स सव्वत्थोवा उक्क० हाणी। बड्डी असंखेजगुणा । सम्मामि० सव्वत्थोवा उक्क. वडी । हाणी असंखेज्जगुणा । बारसक०-भय-दुगुंछा० सव्वत्थावा उक्क० वड्डी। अवहाणं तत्तियं चेव । हाणी असंखे० गुणा । तिण्णिसंजल. सव्वत्थोवा उक्कस्सयमवहाणं । वड्डी असंखे०गुणा हाणी विसेसा० । एवं पुरिस० । लोभसंजल० सव्वत्थोव० उक्कस्सयमवहाणं । हाणी असंखे०गुणा । वड्डी असंखे० गुणा । इत्थि-णस०-हस्स-रइ-अरइ-सोगाणं सव्वत्थो० उक्का वड्डी । हाणी असंखे०गुणा । ३५३ आदेसेण मिच्छत्त-सोलसक-पुरिसवेद-भय-दुगुंछ० सव्वत्थोवा उक्क. वडी अवहाणं । हाणी असंखे०गुणा । सम्म०-सम्मामि० सव्वत्थोव० उक्क० वड्डी । हाणी असंखे०गुणा । इत्थि०-णस०-हस्स-रइ-अरइ-सोगाणं सव्वत्थो० उक्क० वड्डी । हाणी और हानि होकर हानि होती है। तथा इनमेंसे किसी एक स्थानमें अवस्थान होता है । मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सम्मम्मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धीचतुष्क, स्त्रीवेद और नपुंसकवेदकी जघन्य हानि किसके होती है ? अन्यतरके होती है। हास्य, रति, अरति और शोककी जघन्य वृद्धि और हानि किसके होती है ? अन्यतरके होती है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए। ६३५२. अल्पबहुत्व दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट। उत्कृष्टका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है- ओघ और आदेश। अोघसे मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट वृद्धि सबसे स्तोक है। अवस्थान उतना ही है। उससे उत्कृष्ट हानि असंख्यातगुणी है। सम्यक्त्वकी उत्कृष्ट हानि सबसे स्तोक है। उससे उत्कृष्ट वृद्धि असंख्यातगुणी है । सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट वृद्धि सबसे स्तोक है। उससे उत्कृष्ट हानि असंख्यातगुणी है। बारह कषाय, भय और जुगुप्साकी उत्कृष्ट वृद्धि सबसे स्तोक है। अवस्थान उतना ही है। उससे उत्कृष्ट हानि असंख्यातगुणी है। तीन संज्वलनोंका उत्कृष्ट अवस्थान सबसे स्तोक है। उससे उत्कृष्ट वृद्धि असंख्यातगुणी है। उससे उत्कृष्ट हानि विशेष अधिक है। इसी प्रकार पुरुषवेदकी अपेक्षा अल्पबहुत्व है। लोभसंज्वलनका उत्कृष्ट अवस्थान सबसे स्तोक है। उससे उत्कृष्ट हानि असंख्यातगुणी है। उससे उत्कृष्ट वृद्धि असंख्यातगुणी है। स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, हास्य, रति, अरति और शोककी उत्कृष्ट वृद्धि सबसे स्तोक है । उससे उत्कृष्ट हानि असंख्यातगुणी है। ६३५३. आदेशसे मिथ्यात्व, सोलह कषाय,पुरुषवेद,भय और जुगुप्साकी उत्कृष्ट वृद्धि और अवस्थान सबसे स्तोक है । उससे उत्कृष्ट हानि असंख्यातगुणी है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिध्यात्व की उत्कृष्ट वृद्धि सबसे स्तोक है। उससे उत्कृष्ट हानि असंख्यातगुणी है। स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, हास्य, रति, अरति और शोककी उत्कृष्ट वृद्धि सबसे स्तोक है। उससे उत्कृष्ट हानि १. पा० प्रतौ 'उक्क० हाणी । बड्डी असंखे०गुणा' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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